22--22—22--22--22—2 |
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दिल्ली से जो बासी रोटी आई है |
अपने हिस्से में केवल चौथाई है |
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बातें क्या है, बातें बस चतुराई हैं |
बातों में देखो कितनी गहराई है |
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मंहगाई की डायन कैसे भागेगी ? |
तुमने भी तो चिल्लर से झड़वाई है |
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उम्मीदें क्या लोगों से करते, जिनके |
आँखों में डर, होठों पे तुरपाई है |
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अफसर दौरे पे अक्सर कह जाते हैं |
छग्गन तेरी खेती तो हरियाई है |
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अब के गाँवों में जाओ गर, तो देखो |
क्या रिश्तों में पहले-सी गरमाई है |
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आज सफलता के अंधे क्या समझेंगे |
शुष्क नयन की ममता क्यूँ पथराई है |
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आईनों ने जब भी ठाना है अक्सर |
दीवारों की हड्डी तक चटकाई है |
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झूठी है बाबुल के आँगन की मस्ती |
सहमी डोली, सहमी सी शहनाई है |
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अब तो काबिल कहलाता है, केवल वो |
इज्जत जिसने दौलत से तुलवाई है |
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Comment
दिल्ली से जो बासी रोटी आई है |
अपने हिस्से में केवल चौथाई है वाह... आज की ग़ज़ल का मतला ..शानदार |
आदरणीय मिथिलेश जी ,लाज़वाब ग़ज़ल हुई है |सभी अशआर ज़दीद शायरी की बेमिसाल बानगी है | |
मंहगाई की डायन कैसे भागेगी ? |
तुमने भी तो चिल्लर से झड़वाई है |
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उम्मीदें क्या लोगों से करते, जिनके |
आँखों में डर, होठों पे तुरपाई है .....होठों पर तुरपाई ..अच्छा और अनोखा बिम्ब है | |
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अफसर दौरे पे अक्सर कह जाते है |
छग्गन तेरी फसलें तो हरियाई है......................ग़ज़ल में व्यंग्य ऐसे कहा जाता है...सुन्दर |
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आज सफलता के अंधे क्या समझेंगे |
घर में माँ की आँखें क्यूं पथराई है.........आज भावनाएं पथरा गई है ...भाई जी |
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आईनों ने अक्सर जब भी ठाना है |
आईनों ने दीवारें चटकाई है.......एक और अच्छा बिम्ब ...तयख्खुल ने काफ़ी मशक्कत की है ....बधाई |
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झूठी है बाबुल के आँगन की मस्ती |
सहमी डोली, सहमी सी शहनाई है........कहारों के भेष में लुटेरे भी हैं |
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अब तो केवल काबिल वो कहलाता है |
इज्जत जिसने दौलत से तुलवाई है.........ग़ज़ल का असली शेर जिसकी बोली लग सकती है ....भाई जी |
आदरणीय मिथिलेश जी ..आज आदरणीय अदम साहब होते तो वाह..वाह कह उठते |सादर अभिनन्दन | |
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