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एक तरही ग़ज़ल....-महिमा श्री

बहर- 

2122 1212  22

खुशनुमा ये सफ़र है क्या कहिये

साथ मेरे वो गर है क्या कहिये

 

आ गई जान पर है क्या कहिये

चाक मेरा जिगर है क्या कहिये

इश्क में जीत कुछ नहीं होती

हार का फिर भी डर है क्या कहिए

लो गई जान मेरी उल्फत में

सांस अब मुख्तसर है क्या कहिये

छांव मिलती नहीं है दूर तलक

काट डाला शज़र है क्या कहिये

 

साथ अच्छा है हाल अच्छा है

दिल अकेला मगर है क्या कहिये

इश्क धोखा है लाख समझाया ,

दिल ही गुस्ताख़ गर है क्या कहिये

झील में अक्स देख कर मेरा

कौन आता  इधर है क्या कहिये

रात है या बरात शबनम की

भीग कर सोया घर है क्या कहिये

 

 मौलिक एवं अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on March 2, 2015 at 8:56am

ख़ूबसूरत गज़ल के लिये बधाइयाँ, आदरणीया .......

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 1, 2015 at 11:15pm

सभी उम्दा अश्यार! आपको बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2015 at 9:22pm
महिमाजी गज़ल पर आपकी मेहनत प्रभावित करती है बधाई आपको इस रचना के लिये।
"आसमानी रंगो का मेला है" इस मिसरे की तक्ती फिर से करके देखें
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 1, 2015 at 9:20pm
सभी शेर लाजवाब हैं, क्या कहें, बहुत बहुत बधाई , इस प्रस्तुति पर, आदरणीय महिमा श्री , सादर।
Comment by somesh kumar on March 1, 2015 at 8:05pm

पूरी गज़ल पर ढेरों बधाई पर इन दो शे'रों पर विशेष दाद 

इश्क में जीत कुछ नहीं होती

हार का फिर भी डर है क्या कहिए

इश्क धोखा है लाख समझाया ,

दिल ही गुस्ताख़ गर है क्या कहिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 1, 2015 at 7:16pm

आदरणीय महिमा जी, बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई, शेर दर शेर दाद कुबूल कीजिये 

खुशनुमा ये सफ़र है क्या कहिये

साथ मेरे वो गर है क्या कहिये..... बेहतरीन मतला 

छांव मिलती नहीं है दूर तलक

काट डाला शज़र है क्या कहिये............. वाह वाह 

आसमानी रंगो का मेला है

दिल अकेला मगर है क्या कहिये......... मिसरा-ए-उला शायद बेबह्र हुआ है 

इश्क धोखा है लाख समझाया ,

दिल ही गुस्ताख़ गर है क्या कहिये.......... मुग्ध करता शेर 

झील में अक्स देख कर मेरा

कौन आता  इधर है क्या कहिये....... वाह वाह्ह्हह्ह्ह्ह अच्छा शेर 

रात है या बरात शबनम की

भीग कर सोया घर है क्या कहिये........ बहुत ही प्यारा और बेहतरीन शेर 

इस बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by maharshi tripathi on March 1, 2015 at 6:46pm

आ. महिमा जी अच्छी गजल पर आपको बधाई |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 1, 2015 at 2:58pm

आदरणीय महिमा जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है,  अंतिम शेर बहुत सुन्दर हुआ है. बहुत बहुत बधाई.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 1, 2015 at 1:46pm

रात है या बरात शबनम की

भीग कर सोया घर है क्या कहिये---------------- कमाल का आख़िरी शेर है i आपको बहुत-बहुत बधाई आ० महिमा जी

 

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