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जीवन कठिनाईयों मे 

गुजर रहा है ऐ मौला 

रात गुजर रही है 

बगैर नींद के ऐ मौला 

बेपरवाह एक जुगनू 

खलल डाल रहा ऐ मौला 

सफर मे चला जा रहा हूँ 

मंजिल की तलाश मे ऐ मौला

कहता बहुत हूँ, चीखता बहुत हूँ 

सुनता कोई नहीं ऐ मौला 

काली रात कटेगी, सुबह तो होगी 

इंतजार मे हूँ ऐ मौला 

जख्म इतना दिया कि 

इंतहा कि हद कर दी 

जख्म के दर्द का अहसास न रहा ऐ मौला

खारा हो गया हूँ जैसे समंदर का पानी 

अब मिठास की आस है ऐ मौला 

हमनवा, हमनवा न रहा 

हमसफर, हमसफर नहीं 

परछाई भी कतरा रही अब तो मौला .... 

( मौलिक व अप्रकाशित) 

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Comment by VIRENDER VEER MEHTA on February 25, 2015 at 12:11pm

हमनवा, हमनवा न रहा 

हमसफर, हमसफर नहीं 

परछाई भी कतरा रही अब तो मौला,......

बहूत खूबसूरत रचना आमोद कुमार श्रीवास्तव जी बधाई स्वीकार करे.

Comment by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 9:44am

आदरणीय आमोद कुमार श्रीवास्तव जी , सुन्दर रचना , बधाई प्रेषित !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 25, 2015 at 1:54am

सुन्दर प्रस्तुति... बधाई 

Comment by maharshi tripathi on February 24, 2015 at 9:57pm

इस खूबसूरत रचना पर आपको बधाई ,,आ.आमोद कुमार जी |

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