For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

संसार की समस्त सम्भावनाओं का क्षेत्र......हरि प्रकाश दुबे

क्यों

घबराते हो

परिवर्तन से ?

परिवर्तन तो होगा  

होता रहा है, होगा बार- बार

किसी के लिए अच्छा भी हो सकता है  

किसी के लिए अवांछनीय भी हो सकता है 

पर सृष्टी का नियम है, बदल सकते हो क्या ?

पर एक बात जान लो, परिवर्तन से ही इंसान लड़ता है

आगे बढता है ,परिवर्तन से ही इंसान सड़ जाने से बचता है !!

क्यों

घबराते हो

समस्याओं से ?

समस्यायें तो आयेंगी

आती रही है, आयेंगी बार – बार

जीवन ऐसे ही चलता है ,चलता रहेगा

कदम –कदम पर छलिया, तुमको छलता रहेगा

कितनी ही चालाकी दिखाओ, बच सकते हो क्या ?

पर याद करो ये सब तुम पहले भी झेल चुके हो कई बार

डूबे हो कभी उबरे हो, पर हर बार नए अंदाज़ के साथ उभरे हो !!   

क्यों

घबराते हो

रिक्तताओं से ?

रिक्ततायें तो आयेंगी

आती रही है,  आयेंगी बार – बार

समय- समय पर, तुम शून्य हो जाओगे

समझना चाहोगे, पर कुछ भी समझ नहीं पाओगे

निर्वात में फँसाये जाओगे, निकल  सकते हो क्या ?

पर यही निर्वात, संसार की समस्त सम्भावनाओं का क्षेत्र है

इसी अवस्था को अपना वरदान बना, अपने जीवन को महान बना !!   

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

 

Views: 746

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 10:10am

आदरणीय मिथिलेश भाई बहुत - बहुत आभार आपका !

Comment by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 10:07am

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु  सादर धन्यवाद ! 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 25, 2015 at 6:47am
परिवर्तन, समस्याओं, शून्यता पर सुन्दर कविता , आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , बधाई , सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 25, 2015 at 1:25am

आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी पिरामिड आकार या शिखर ध्वज आकार की इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by maharshi tripathi on February 24, 2015 at 11:01pm

महान बनने की सीख देती आपकी कविता पार आपको बधाई ..आ. हरिप्रकाश  जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
47 seconds ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
1 minute ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
14 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
14 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
14 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service