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उद्घाटन : लघुकथा (हरि प्रकाश दुबे)

“मंत्री जी, शानदार पुल बनकर तैयार है, आपके नाम की शिला भी रखवा दी है, बस जल्दी से उद्घाटन कर दीजिये !”

 “अरे यार देख रहे हो कितना व्यस्त चल रहा हूँ आजकल, लेन-देन तो हो गया है न, फिर तुम्हे उद्घाटन की इतनी चिंता क्यों है ?”

“साहब, चिंता उद्घाटन की नहीं है, बारिश की है !” 

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित”     

Views: 979

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Comment by Hari Prakash Dubey on February 20, 2015 at 9:54pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर , रचना पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया  ,प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभार ! सादर 

Comment by vandana on February 20, 2015 at 9:05pm

वाह क्या बात है बहुत बढ़िया लघुकथा 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 20, 2015 at 8:58pm
कितनी बड़ी खुशी की बात है, पुल बना ,कम से कम सचमुछ बना , केवल कागज़ पर तो नहीं बना। वरना सिर्फ कागज़ पर ही बनता तो हम क्या कर लेते।
कहानी अच्छी है, बधाई , आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी, सादर।

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Comment by मिथिलेश वामनकर on February 20, 2015 at 8:08pm

सटीक और व्यंग्यपूर्ण अच्छी लघुकथा ... हार्दिक बधाई 

Comment by Shubhranshu Pandey on February 20, 2015 at 8:05pm

आदरणीय हरी प्रकाश दूबे जी,

पक्के लेन देन का कच्चा निर्माण..

सुन्दर कथा है,

सादर.

Comment by somesh kumar on February 20, 2015 at 7:56pm

सुंदर व्यंग्य पूर्ण और सधी हुई लघुकथा लगी बाकी कुछ दोष-कमियाँ होंगी तो ज्ञानी मित्र स्वयं इंगित करेंगे |बधाई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 20, 2015 at 7:20pm

बहुत सुन्दर , आदरणीय हरि प्रकाश भाई बढिया व्यंग्य है  !  आपको हार्दिक बधाई , लघुकथा के लिये ॥

Comment by Hari Prakash Dubey on February 20, 2015 at 6:59pm

आदरणीय वीरेन्द्र मेहता जी , आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on February 20, 2015 at 6:04pm

आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी बहुत सुन्दर कथा | .............."साहब, चिंता उद्घाटन की नहीं है, बारिश की है !”    इस  अंतिम पंक्ति ने जबरदस्त चोट के साथ कथा को बेमिसाल खूबसूरती प्रदान की है | मेरी और से  बधाई स्वीकार करे.

Comment by maharshi tripathi on February 20, 2015 at 4:58pm

आधुनिक काम काज की वास्तविकता प्रस्तुत करती सुन्दर लघुकथा पर आपको हार्दिक बधाई आ. दूबे जी |

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