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ग़ज़ल : कैसे कैसे ख़ुशी ढूँढ़ते हैं

बह्र : २१२ २१२ २१२२

 

दूसरों में कमी ढूँढ़ते हैं

कैसे कैसे ख़ुशी ढूँढ़ते हैं

 

प्रेमिका उर्वशी ढूँढ़ते हैं

पर वधू जानकी ढूँढ़ते हैं

 

हर जगह गुदगुदी ढूँढ़ते हैं

घास भी मखमली ढूँढ़ते हैं

 

वोदका पीजिए आप, हम तो

दो नयन शर्बती ढूँढ़ते हैं

 

वो तो शैतान है जिसके बंदे

क़त्ल में बंदगी ढूँढ़ते हैं

आज भी हम समय की नदी में

बह गई ज़िन्दगी ढूँढ़ते हैं

----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by somesh kumar on February 18, 2015 at 8:13pm

मानव-चरित्र के नकारत्मक पक्ष को कितनी साफ़गोई से उकेरा फिर इशारों में सत्चरित्र बनने का प्रयास और माँझी को वापस पाने की बेकली  |सुंदर भाव से भरी गज़ल 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 18, 2015 at 12:09pm

प्रेमिका उर्वशी ढूँढ़ते हैं

पर वधू जानकी ढूँढ़ते हैं....बहुत खूब आ० भाई   धर्मेन्द्र जी , हार्दिक बधाई l

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 18, 2015 at 11:41am

शुक्रिया  Pari जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 18, 2015 at 11:40am

बहुत बहुत धन्यवाद  गिरिराज  जी

Comment by Pari M Shlok on February 18, 2015 at 10:11am
प्रेमिका उर्वशी ढूँढ़ते हैं
पर वधू जानकी ढूँढ़ते हैं
......................सटीक

बहुत खूब लिखा आपने उम्दा

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2015 at 8:28pm

प्रेमिका उर्वशी ढूँढ़ते हैं

पर वधू जानकी ढूँढ़ते हैं

वो तो शैतान है जिसके बंदे

क़त्ल में बंदगी ढूँढ़ते हैं   --------- बहुत खूब आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , गज़ल के लिये और इन अशआर के लिये दिली बधाइयाँ ॥

Comment by डिम्पल गौड़ on February 17, 2015 at 7:42pm

अदभुत और  सुन्दर  प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आ. धर्मेन्द्र सिंह जी |

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 17, 2015 at 6:40pm

धन्यवाद  ajay sharma जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 17, 2015 at 6:40pm

बहुत बहुत शुक्रिया Hari Prakash Dubey जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 17, 2015 at 6:40pm

बहुत बहुत धन्यवाद Dr. Vijai Shanker जी

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