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ग़ज़ल : मारो बम गोली या पत्थर कलम नहीं मिटती

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २

 

माना मिट जाते हैं अक्षर कलम नहीं मिटती

मारो बम गोली या पत्थर कलम नहीं मिटती

 

जितने रोड़े आते उतना ज़्यादा चलती है

लुटकर, पिटकर, दबकर, घुटकर कलम नहीं मिटती

 

इसे मिटाने की कोशिश करते करते इक दिन

मिट जाते हैं सारे ख़ंजर कलम नहीं मिटती

 

पंडित, मुल्ला और पादरी सब मिट जाते हैं

मिट जाते मज़हब के दफ़्तर कलम नहीं मिटती

 

जब से कलम हुई पैदा सबने ये देखा है

ख़ुदा मिटा करते हैं अक़्सर कलम नहीं मिटती

-------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 890

Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 26, 2015 at 1:17pm

बहुत बहुत शुक्रिया महिमा जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 26, 2015 at 1:17pm

बहुत बहुत शुक्रिया ख़ुर्शीद जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 26, 2015 at 1:16pm

शुक्रिया हरि प्रकाश जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 26, 2015 at 1:15pm

शुक्रिया अजय जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 26, 2015 at 1:15pm

शुक्रिया मिथिलेश जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 26, 2015 at 1:15pm

आदरणीय गोपाल नारायण जी एवं कृष्ण मिश्रा जी, मैं आप लोगों का पूरा सम्मान करता हूँ और आप अगर मुझसे या मैं आपसे असहमत रहूँ तो इस सम्मान में कहीं कोई अंतर नहीं आएगा। "ईश्वर के दफ़्तर" से यदि बात स्पष्ट नहीं हो रही है तो मैं "धर्मों के दफ़्तर" या "मज़हब के दफ़्तर" कर देता हूँ। सादर

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 26, 2015 at 1:06pm
शुक्रिया सुशील जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 26, 2015 at 1:05pm
शुक्रिया निर्मल जी
Comment by MAHIMA SHREE on February 26, 2015 at 10:50am

जितने रोड़े आते उतना ज़्यादा चलती है

लुटकर, पिटकर, दबकर, घुटकर कलम नहीं मिटती

 

इसे मिटाने की कोशिश करते करते इक दिन

मिट जाते हैं सारे ख़ंजर कलम नहीं मिटती...... बहुत बढि़या... कलम की ताकत को बखूबी बयां किया आ. धर्मेन्द्र जी, हार्दिक बधाई आपको

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 9:34am

जितने रोड़े आते उतना ज़्यादा चलती है

लुटकर, पिटकर, दबकर, घुटकर कलम नहीं मिटती

 

इसे मिटाने की कोशिश करते करते इक दिन

मिट जाते हैं सारे ख़ंजर कलम नहीं मिटती

 आदरणीय धर्मेंदर कुमार सिंह 'सज्जन' जी ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |ढेरों दाद कबूल फरमावें |कोट किये अशआर 'कलम की ताकत को बखूबी दर्शा रहें हैं |हार्दिक बधाई |सादर अभिनन्दन |

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