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गुनगुन करती थी सदा

वो एक लड़की ..

खिड़की से आती थी नज़र

वो एक लड़की

कभी नाचती गुड़िया संग

कभी लगाती गुलाबी रंग

बाबा के कंधों पर चढ़

दुनिया थी देखती

माँ की बाहों में झुला झूलती

समय उपरान्त

उसी खिड़की में

आई  नज़र

वो एक लड़की

ले रंगबिरंगी चुनर

पूरियाँ तलती थी  

बाबा को बिस्तर पर सुला

माथा सहलाती 

वो एक लड़की...

बहुत दिनों से

बंद थी खिड़की

नहीं आती नजर अब

वो एक लड़की

आज खुली खिड़की और

दिखी वो एक लड़की ?

माथे बिंदिया चमक रही थी

चूड़ियाँ भी खनक रही थी

मगर चेहरा कुछ बुझा सा था

ग़मगीन और उदासीन

दिखी आज

वो एक लड़की...

साल कुछ बीते और..  

खिड़की बंद हो गयी

सदा के लिए

नहीं दिखती अब ..

वो चहकती  लड़की

क्यूंकि दहेज़ की भेंट

चढ़ चुकी थी

वो एक लड़की...

डिम्पल गौर 'अनन्या '

(मौलिक और अप्रकाशित ).

 

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Comment

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Comment by maharshi tripathi on February 8, 2015 at 5:48pm

दहेज़ प्रथा को बयां करती ,,,अनोखी कविता |बधाई हो आ.अनन्या जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 8, 2015 at 5:35pm
सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 8, 2015 at 11:49am

शुरू से अंत तक रचना में, सुंदर मार्मिक भाव उभर कर आयें है. बधाई आदरणीया डिम्पल जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on February 8, 2015 at 10:21am

आदरणीया अनन्या जी, सुन्दर रचना, भाव हेतु बधाइयाँ...

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