For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पात्र परिचय

 

गोपाल -   एक गरीब बालक  (उम्र करीब  दस साल )

जमुना  -  गोपाल की माँ 

मुनिया -   गोपाल की छोटी बहन

गुप्ता जी - प्रतिष्ठित व्यापारी

रमेश - गुप्ता जी का छोटा भाई

गोलू  -  गुप्ता जी का सात वर्षीय पुत्र

शामू  - गुप्ता जी का नौकर 

(प्रथम दृश्य)

(छोटी सी झोपड़ी में जमुना , टूटी सी चारपाई पर सो रही है , उसके पास उसकी बेटी मुनिया बैठी है )

मुनिया  - माँ  ! माँ ! उठो न माँ ..मुझे बहुत तेज भूख लग रही है |

जमुना - (रोते रोते  ) बिटिया मैं मजबूर हूँ , कैसी अभागन हूँ कि अपनी संतानों को दो जून की रोटी भी नहीं खिला पा  रही  हूँ ..आह !  अब  और नहीं सहा  जाता यह दुःख.. मुझे ऊपर बुला ले भगवान्  |

( तभी  वहां गोपाल आता है )

गोपाल - मुनिया , रो मत मेरी बहन , माँ बहुत बीमार है न, इसलिए कुछ दिन से बंगले में काम करने नहीं जा सकी ...मुझे पता है मुनिया ! तूने दो दिन से कुछ भी तो नहीं खाया है |

मुनिया  - लेकिन भैया आपने भी तो कुछ नहीं खाया है |

गोपाल - (प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुए ) मेरी चिंता मत कर ..मुझसे पहले तू है ..मैं अभी जाता हूँ और  तेरे  लिए कुछ  खाने को लेकर  लाता हूँ  |

( गोपाल वहां से सीधे उस घर में जाता है जहाँ उसकी माँ काम करती है , मगर उस घर के दरवाजे पर ताला लगा हुआ देख ,वह निराश हो जाता है  ...गोपाल रास्ते में कई लोगों से भीख माँगता हैं मगर हर कोई उसे दुत्कार देता है )

(दूसरा दृश्य)

( गुप्ता जी के घर में, उनकी पुत्री के विवाह की तैयारियां बड़े ही जोर शोर चल रही है

गुप्ता जी – ( चिल्लाते हुए )अरे ! रमेश , कहाँ हो तुम भई ?

रमेश  – हाँ कहिये भाईसाहब ..क्या कह रहें हैं आप ?

गुप्ता जी – मेहमान आने वाले हैं ..तुम्हे कुछ पता भी है ? अरे भाई इंतजाम देखो .. |

रमेश – आप बिलकुल भी चिंता मत करिए भाईसाहब , सारे  इंतजाम हो चुके हैं |

( तभी वहाँ गोपाल आ पहुँचता है | मेहमानों की दावत के लिए सजाए हुए भोजन पर उसकी निगाहें ठहर सी गई  , मुनिया का रोता चेहरा उसकी आँखों के सामने आने लगा ..उसके कदम बरबस ही  दावत की मेज तक पहुँच गए ..वह नीचे झुक कर चुपके से पूरियाँ उठाने की कोशिश करने लगता है तभी अचानक , गुप्ता जी की नज़र उस पर पड़ जाती है )

गुप्ता जी  --( गुस्से से ) ऐ लड़के ! कौन है तू ? चोरी करने आया है ...| इन लोगों को तो हराम का माल चाहिए...शामू , इसे धक्के मार कर बाहर कर दे |

गोपाल – ( गिडगिडाते हुए ) मालिक , मालिक ...मैं चोर नहीं हूँ  मालिक ..मेरी बहन भूखी है साब ..उसने दो दिन से कुछ भी नहीं खाया..हम पर रहम करो साब |

( गुप्ता जी , गोपाल के हाथों से पूरी छीनकर वापस उसी स्थान पर रख देते हैं तथा उसे एक चपत भी जड़ देते हैं , गोपाल रोते रोते  दया की भीख माँगता है, मगर उसकी एक नहीं सुनी जाती    )

गुप्ता जी –( नौकर से ) शामू ! जल्दी इसे बाहर का रास्ता दिखा | और तू  सुन ले ज्यादा पैतरे  दिखाएगा तो जेल की हवा खिलाने में मुझे जरा भी वक्त नहीं लगेगा ..समझा कि नहीं |

( गोपाल को धक्के मार कर घर से बाहर कर दिया जाता है , वह रो रहा है मगर उसका रुदन संगीत की तेज आवाजों में कही दब सा जाता है |

(तभी वहाँ गुप्ता जी का पुत्र गोलू  आ जाता है ,  उसके हाथ में भोजन की थाली लगी हुई थी    )

गुप्ता जी – ( बड़े ही स्नेह से ) अरे मेरे लाल ..खाना नहीं खाया अभी तक ?

गोलू – पापा ! मेरा पेट भर चुका है ..माँ है कि जबरदस्ती खिलाए जा रही है .. ( डकार लेते हुए)  मुझे नहीं खाना अब |

गुप्ता जी – ( वाणी में बड़ी ही मिठास घोलते हुए ) कोई बात नहीं बेटे , सामने जो जूठन का ढेर है न वहाँ  डलवा देता हूँ | कुत्ते खा लेंगें |

डिम्पल गौर 'अनन्या'  (३१/१/१५)

(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 1057

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डिम्पल गौड़ on February 2, 2015 at 9:37pm

 "आदरणीय मिथिलेश  वामनकर जी आपकी सुन्दर टिप्पणी के  लिए सादर आभार ...

Comment by डिम्पल गौड़ on February 2, 2015 at 9:35pm

आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया मेरे लेखन की गति को और अधिक  विकसित  कर पाएगी  ...| बधाई के लिए धन्यवाद ..सादर 

Comment by डिम्पल गौड़ on February 2, 2015 at 9:30pm

सादर आभार आदरणीय गणेश जी बागी जी ...आपके द्वारा सुझाए गए बिंदु वाकई में काबिलेतारीफ हैं ..आपको एक बात बताना चाहती हूँ कि गोपाल का रास्ते में भीख माँगने वाली घटना मैं भी जोड़ना  चाह रही थी मगर लगा कि कहीं अधिक लम्बी न हो जाए | अन्य कई महत्वपूर्ण बिंदु  भी  मुझे बहुत  ही  महत्वपूर्ण लगे ..सही  और सटीक प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय तल से आभार व्यक्त करती हूँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 2, 2015 at 8:25pm

आदरणीया डिम्पल गौर जी,संवेदनशील विषय पर प्रभावित करती एकांकी के लिए हार्दिक बधाई आपको

Comment by Hari Prakash Dubey on February 2, 2015 at 8:01pm

आदरणीया डिम्पल गौर जी,सुन्दर प्रयास ,हार्दिक बधाई आपको ! बाकी "बागी" सर की बात पर गौर करियेगा ! सादर 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 2, 2015 at 12:55pm

आदरणीया डिम्पल गौर जी, एकांकी के लिए जो विषय का चयन आपके द्वारा किया गया है उसपर कई कई बार कई कई बातें कही और लिखी जा चुकी है, विषय संवेदनशील है और मानव हृदय को झकझोर देने वाला है. कुछ विन्दुओं का जिक्र करना चाहता हूँ ....

//गोपाल रास्ते में कई लोगों से भीख माँगता हैं मगर हर कोई उसे दुत्कार देता है//

--भीख में खाना मांगने पर आज भी कई ऐसे लोग हैं जो अवश्य देते हैं. खैर माना कि उसे भीख नहीं मिला.

--क्यों न उस घर में खाना पहले मांगने गया जहाँ उसकी माँ काम करती है, भारतीय परिवेश में काम वाली बाई को लोग खाना वगैरह दे देते हैं.

//उसके कदम बरबस ही  दावत की मेज तक पहुँच गए ..वह नीचे झुक कर चुपके से पूरियाँ उठाने की कोशिश करने लगता है//

---गुप्ता जी का घर हो या कोई घर हो खाना चुराने पर पिटेगा ही, क्या पहले गोपाल को खाना माँगना नहीं चाहिए था?

मुझे लगता है कि इन विन्दुओं पर भी लेखिका को ध्यान देने की जरुरत. एक संवेदनशील विषय पर काम करने हेतु बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें आदरणीया.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपने, आदरणीय, मेरे उपर्युक्त कहे को देखा तो है, किंतु पूरी तरह से पढ़ा नहीं है। आप उसे धारे-धीरे…"
6 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"बूढ़े न होने दें, बुजुर्ग भले ही हो जाएं। 😂"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. सौरभ सर,अजय जी ने उर्दू शब्दों की बात की थी इसीलिए मैंने उर्दू की बात कही.मैं जितना आग्रही उर्दू…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय, धन्यवाद.  अन्यान्य बिन्दुओं पर फिर कभी. किन्तु निम्नलिखित कथ्य के प्रति अवश्य आपज्का…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश जी,    ऐसी कोई विवशता उर्दू शब्दों को लेकर हिंदी के साथ ही क्यों है ? उर्दू…"
7 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मेरा सोचना है कि एक सामान्य शायर साहित्य में शामिल होने के लिए ग़ज़ल नहीं कहता है। जब उसके लिए कुछ…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. अजय जी,ग़ज़ल के जानकार का काम ग़ज़ल की तमाम बारीकियां बताने (रदीफ़ -क़ाफ़िया-बह्र से इतर) यह भी है कि…"
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको एक चुप्पी है जो अब तक खल रही…"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सोच को नव चेतना मिली । प्रयास रहेगा…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service