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गजल-लोग अब आपका बोलते है मुझे!

212 212 212 212

आपके नाम से टोकते है मुझे!
लोग अब आपका बोलते है मुझे!!

रोज में इक नजर देखते भी नहीं!
रात में चाँद से पूछते है मुझे!!

जख्म के पेड को फिर हरा कर चले!
किस तराजू में वे तोलते है मुझे!!

मर गया हूँ मगर चैन अब भी नहीं!
आज तक भी कई कोसते है मुझे!!

नाम दिल से मिटा तो दिया पर सनम!
दर्द बेघर हुए घूरते है मुझे!!

लगता है सांस दो चार ही रह गयी!!
जिस नजर से सभी देखते है मुझे!!

पूछ 'राहुल' उन्हें आज क्या चाहिए!
रोज दर रोज जो बाँटते है मुझे!!

मौलिक व अप्रकाशित!

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Comment by Rahul Dangi Panchal on January 22, 2015 at 1:11pm
आदरणीय somesh kumar जी टंकण त्रुटी से गलत हो गया क्षमा चाहता हुँ! वह शब्द उत्साहवर्धक है! सादर!
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 22, 2015 at 1:08pm
आदरणीय somesh kumar जी आपकी प्रतिक्रिया बहुत सउत्वसाहर्धक है! दिल की गहराईयों से आपका आभारी हुँ!
Comment by somesh kumar on January 22, 2015 at 11:34am

लगता है सांस दो चार ही रह गयी!!
जिस नजर से सभी देखते है मुझे!!

गज़ल के लिए आपके मन में ललक है ,उम्मीद है लगातार कोशिशों से आप जरुर इस विधा में सिद्धि हासिल करेंगे |

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 22, 2015 at 9:39am
आदरणीय pratibha tripathi जी ह्रदय तल से धन्यवाद स्वीकार करें!
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 22, 2015 at 9:39am
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर जी आपकी प्रतिक्रिया पाकर रचना सफल हुई सादर धन्यवाद!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 22, 2015 at 8:16am

लाजवाब गज़ल हुई है , आदरणीय राहुल भाई । बधाइयाँ ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 21, 2015 at 10:38pm
आदरणीय rajesh kumari जी मेरा मार्ग दर्शन हेतु मैं आपका ह्रदयतल से आभार प्रकट करता हुँ! आपका आशिर्वाद मुझ पे ह

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 21, 2015 at 10:30pm

दिन में वो इक नज़र देखते भी नहीं ...या ..धूप में इक नज़र देखते भी नहीं ..या एसा ही कुछ सोचिये  

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 21, 2015 at 10:24pm
आदरणीय rajesh kumari जी बहुत बहुत धन्यवाद! मैं कोई शब्द सोचता हुँ अगर आपके जहन में कोई शब्द हो तो क्रपया बताने का कष्ट करें! सादर!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 21, 2015 at 9:23pm

मर गया हूँ मगर चैन अब भी नहीं!
आज तक भी कई कोसते है मुझे!!-----वाह ...बहुत मर्मस्पर्शी 

रोज में इक नजर देखते भी नहीं!----रोज  के साथ में ..ठीक नहीं ---शायद आप दिन के लिए रोज लिख रहे हैं  जब की रोज में रात  दिन दोनों शामिल होते हैं सानी में आप रात की बात कर रहे हैं तो उला में कोई और शब्द सोचिये --जैसे.... दिन में वो इक नजर देखते भी  नहीं 
रात में चाँद से पूछते है मुझे!!------

अच्छी ग़ज़ल हुई बहुत- बहुत बधाई राहुल जी 

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