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तुम आए नहीं

तुम आए नहीं-आएगें कहकर

और एक हम थे चले आए कुछ नही कहकर

इसी उम्मीद से की तुम आओगे ज़रूर

चाहे हो जितना मज़बूर |

वक्त जाता रहा,निगाह ठहरी रही

दिल धड़कता रहा ,सोच ठहरी रही

तुम आ गए लगा यूँ ही रह –रहकर

तुम आए नहीं –आएगें कहकर,

कॉल बजती रही नाद आया नही

प्रश्न उठते रहे ,जवाब आया नही

मायुस होता रह मन सितम सह-सहकर

तुम आए नहीं-आएगें कहकर |

शाम जाती रही ,यकीं जाता रहा

क्यों किया यकीं ,अफ़सोस आता रहा,

यही सोचता रहा ,चहल कर-करकर

तुम आए नहीं आएगें कहकर

और फिर आखिर में ना मायूसी रही,

ना खामोशी रही,ना आस रही,ना एहसास रहा

गुजर गई एक शाम फिर

तेरे इंतजार की तपिश सह-सहकर

तुम आए नहीं-आएगें कहकर |

सोमेश कुमार (०९/०९/२००९)(मौलिक एवं अप्रकाशित )

 

 

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 31, 2014 at 10:31am

"तुम आए नहीं-आएगें कहकर |" बहुत  भावपूर्ण  रचना रची है | हार्दिक  बधाई  श्री सोमेश कुमार जी 

Comment by Ram Ashery on December 31, 2014 at 9:47am

मेरी वंदना

प्रभु मेरी वंदना सुनो, शुभ आशीष सबको दीजिए

नव वर्ष के आगमन पर, कल्याण सबका कीजिए ।

दुष्ट पापी नीच दांनव का अब दलन तुम कीजिए

प्रेम करुणा सद्भाव मैत्री का बीज तुम बो दीजिए ।

गरीब और कमजोर सबका, सारा दुख हर लीजिए

सूर्य की पहली किरण संग, उपहार हमको दीजिए ।

ज्ञान ज्योति पहुंचे घर घर, अंधकार सब हर लीजिए

बच्चा कोई अशिक्षित न रहे, ऐसी व्यवस्था कीजिए ।

सब बाधा को दूर कर, प्रगति पथ प्रशस्त कीजिए

ज्ञान की अविरल धारा को,लोगों तक पहुंचा दीजिए ।

मंदिर मस्जिद गिरजा से अब निजात सबका कीजिए

हम खड़े हैं यह आस लेकर हम पर उपकार कीजिए । 

सभी विघ्न बाधा तोड़कर, एक सरल राह बना दीजिए  

सदियों से पिछड़े लोगों का, उत्थान अब कीजिए ।

गरीब का कहीं शोषण न हो, अब निश्चित कीजिए

झूठे मक्कार लोगों को, अब तत्काल सजा दीजिए ।

देश प्रगति में बाधा का, भगवन तुरंत संहार कीजिए

भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों का, पर्दा फास कीजिए ।

समाज से अन्याय मिटे, ये न्याय सबको दीजिए

सही और गलत चुन सकें, सद्बुद्धि सबको दीजिए ।

माँ बहनें सभी सुरक्षित हो,विश्वास जागृत कीजिए

सुख समृद्धि मिले सबको, संस्कार सबको दीजिए ।

प्रेम पुष्प चहुं ओर खिले, वाटिका विकसित कीजिए

पशु पक्षी भयभीत न हो, ये विकास सबका कीजिए।   

देश की विषाक्त होती नदियों की, अब सुरक्षा कीजिए

अब शीतल मंद समीर बहे, ऐसा सुंदर प्रबंध कीजिए ।

देश में अमन और सौहार्द बढ़े, उत्थान सबका कीजिए

हमारी सीमाएं सुरक्षित हो,अब ताकत हमको दीजिए ।

अत्याचार को हम मिटा सके, शक्ति हमको दीजिए

दुश्मन का मर्दन कर सके, वो अस्त्र हमको दीजिए ।

प्रभु मेरी वंदना सुनो, राम आश्रय को अमर कीजिए  

नव वर्ष के आगमन पर, कल्याण सबका कीजिए ।

मौलिक एव अप्रकाशित

राम आश्रय

 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 30, 2014 at 7:29pm

गुजर गई एक शाम फिर

तेरे इंतजार की तपिश सह-सहकर

तुम आए नहीं-आएगें कहकर |

कभी कभी ऐसा होता है ...आदरणीय श्री सोमेश कुमार जी!

Comment by Hari Prakash Dubey on December 29, 2014 at 11:11pm

प्रश्न उठते रहे ,जवाब आया नही.......बहुत सुन्दर सोमेश भाई ,हार्दिक बधाई !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 29, 2014 at 10:51pm

तुम आए नहीं-आएगें कहकर

इसी उम्मीद से की तुम आओगे ज़रूर

वक्त जाता रहा,निगाह ठहरी रही

अफ़सोस आता रहा,

और फिर आखिर में मायूसी रही,

तुम आए नहीं-आएगें कहकर

आदरणीय सोमेश भाई आपके शब्द, आपकी पंक्तियाँ , आपके लिए 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 29, 2014 at 10:44pm

बढ़िया आदरणीय प्रयासरत रहें

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 29, 2014 at 7:32pm

तुम आए नहीं

तुम आए नहीं-आएगें कहकर

और एक हम थे चले आए कुछ नही कहकर

इसी उम्मीद से की तुम आओगे ज़रूर

चाहे हो जितना मजबूर --------------------------------- सोमेश जी  बहुत सुन्दर i  पथ  प्रशस्त हो i सस्नेह i

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