For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपने  वज़ूद  की  ख़बर   इस तरह  हम  देते हैं
मुट्ठी  में  रेत उठाकर  हम  हवा  में उड़ा देते हैं


क्या हुआ जो  इस  उम्र में  हम बे-समर हो गए
ये शज़र आज भी  गुज़री  बहारों  की हवा देते हैं


अब हंसी भी  लबों पे  पैबंद  सी  नज़र  आती हैं
जाने लोग आँखों में कैसे नमी को  छुपा  लेते हैं


रुख से चिलमन उठते ही नज़रें भी बहकने लगी
हम भी बेजुबानों की तरह पैमाने को उठा लेते हैं


जागते  रहे  तमाम  शब्  हम  उसके इंतज़ार में
बार बार  चरागों  को  हम जलने की सज़ा देते हैं 


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 583

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on December 22, 2014 at 4:22pm

आदरणीय  Hari Prakash Dubey    जी रचना पर आपके स्नेह का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on December 22, 2014 at 4:21pm

आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। गीतिका पर आपके द्वारा बताई गयी संरचना से मैं पूर्णतः सहमत हूँ। किन्तु किसी विद्वान सहयोगी ने गीतिका के बारे में जो बताया उसके अनुसार गीतिका पुराना गीतिका छंद या हरिगीतिका नहीं है। ये ग़ज़ल से मिलती जुलती है किन्तु ग़ज़ल के नियमों से मुक्त है। इसमें कम से कम पाँच युग्म अवश्य हों .पहले युग्म की दोनों पंक्तियाँ समांत पर और बाद के प्रत्येक युग्म की दूसरी पंक्ति का समांत प्रथम युग्म के समान्त जैसा ही होगा जबकि पहली पंक्ति अतुकांत होगी l प्रत्येक युग्म की अभिव्यक्ति स्वतंत्र होगी !
इसी भाव को ध्यान में रखकर मैंने इस ग़ज़ल रूपी गीतिका को रचा। इसीलिये मैंने इसे गीतिका का नाम भी दिया।' फ्री वर्स' से आपका क्या अभिप्राय है आदरणीय। अगर आप इसे गीतिका की श्रेणी में नहीं रखते तो मैं इसे स्वतन्त्र अभिव्यक्ति भी कहा जा सकता है। वैसे आपका सुझाव और मार्गदर्शन मेरे लिए अमूल्य हैं। सुझावात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार। कृपया स्नेह बनाये रखें।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 22, 2014 at 1:40pm

सरना जी

बहुत  बेहतरीन लिखा आपने  i पर  मान्यवर यह गीतिका नहीं है i गीतिका में मात्रा  (14 ,12 ) होती है  i  मुट्ठी  में रेत  उठाकर -----इस पंक्ति में 30 मात्राएँ हैं i यह आपकी फ्री वर्स है i भाव की दृष्टि से बहुत सबल है  i

क्या हुआ जो  इस  उम्र में  हम बे-समर हो गए
ये शज़र आज भी  गुज़री  बहारों  की हवा देते हैं


अब हंसी भी  लबों पे  पैबंद  सी  नज़र  आती हैं
जाने लोग आँखों में कैसे नमी को  छुपा  लेते हैं

Comment by Sushil Sarna on December 22, 2014 at 1:21pm

आदरणीय  मिथिलेश वामनकर जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा ने मेरी लेखनी को जो मान दिया है उसके लिए बंदा आपका शुक्रगुज़ार है। बाकी रही बहर की बात तो इसे आप गीतिका ही मानें तो ठीक होगा। क्योँकि बहर के जाल में मैं उलझ जाता हूँ।

Comment by Hari Prakash Dubey on December 22, 2014 at 1:18pm

रुख से चिलमन उठते ही नज़रें भी बहकने लगी 
हम भी बेजुबानों की तरह पैमाने को उठा लेते हैं.....आदरणीय सुशील सरना जी इस रचना पर हार्दिक बधाई !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 22, 2014 at 9:29am

आदरणीय सुशील सरना जी सुन्दर भावों से सजी रचना के बेहतरीन प्रयास के लिए बधाई 

एक निवेदन है यदि ये ग़ज़ल है तो कृपया बहर अवश्य लिख देवे, हम जैसे पाठकों के लिए बड़ी परीक्षा हो जाती है. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
23 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service