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गजल -- देखकर मासूम बच्चों की हँसी

ग़ैर तरही गजल

देखकर मासूम बच्चों की हँसी
आज कुछ मन की उदासी कम हुई

गीत गजलें छन्द मुक्तक फिर कभी
तुझसे मन उकता गया है शायरी

मुझमें शायद कुछ न कुछ तो है कमी
हर किसी को मुझ से जो नाराज़गी

कल मेरे दिल को बहुत सदमा लगा
मेरी गजलें उसने बेगानी कही

गुजरा बचपन जैसे कल की बात हो
तेज़ है रफ़्तार कितनी वक़्त की

रेत पर लिक्खी इबारत की तरह
कुछ ही पल टिकतें हैं मेरे ख़्वाब भी

आप इसको जो भी चाहे नाम दें
मुझ में है मुझ से सिवा इक अजनबी

उन निगाहों को नहीं भूला हूँ मैं
जिनसे की मैंने कभी थी मयकशी

जो मिला किस्मत में लिक्खा था 'दिनेश'
किस को मिलती ज़िन्दगी में हर खुशी

---- दिनेश कुमार १९/१२/२०१४

( मौलिक और अप्रकाशित )

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Comment by दिनेश कुमार on December 21, 2014 at 6:38pm
सभी साथियों का तह दिल से शुक्रिया । सहयोग और स्नेह बनाए रखिए ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 20, 2014 at 9:00pm

आ. दिनेश भाई , लाजवाब ग़ज़ल कही है , हर शे र उम्दा हुये हैं , बधाइयाँ ।

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 20, 2014 at 8:18pm


रेत पर लिक्खी इबारत की तरह
कुछ ही पल टिकतें हैं मेरे ख़्वाब भी

वाह सर खूब ग़ज़ल कही है

Comment by somesh kumar on December 20, 2014 at 7:50pm

गीत गजलें छन्द मुक्तक फिर कभी
तुझसे मन उकता गया है शायरी|

जो मिला किस्मत में लिक्खा था 'दिनेश'
किस को मिलती ज़िन्दगी में हर खुशी|

सुंदर गज़ल ,जो मेरे दिल को छु गई वो ,फिर पेस्ट कर रहा हूँ 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 20, 2014 at 6:30pm

आदरणीय दिनेश कुमार जी सुन्दर रचना ,बधाई आपको !

Comment by Shyam Narain Verma on December 20, 2014 at 9:55am

बहुत ही लाजवाब रचना है , बधाई।

Comment by दिनेश कुमार on December 20, 2014 at 5:21am
शुक्रिया मिथिलेश जी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 20, 2014 at 12:47am

सुन्दर ! उम्दा ! बधाई!

रेत पर लिक्खी इबारत की तरह
कुछ ही पल टिकतें हैं मेरे ख़्वाब भी.... क्या बात है!

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