For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नये साल का मौसम आया (नवगीत) // --सौरभ

नये साल के नये माह का
मौसम आया..
लेकिन सूरज भौंचक
कितना घबराया है !

चटख रंग की हवा चली है
चलन सीख कर..
खेल खेलती, बंदूकों के राग सुनाती
उनियाये कमरों में बच्चे रट्टा मारें
पंथ-पृष्ठ की तहरीरों से
’वाद’ सिखाती

मंतव्यों में तथ्य नहीं, बस तेरा-मेरा,
सत्य वही जो
सबसे जबरन मनवाया है !

सरसाता है ख़ौफ़
उजाला झींसी-झींसी
अगला करे सवाल-- ’पंथ के नाम उचारें..’
यह कैसा संभाव्य,
देह बारूद-छुई ले,
सहमे-सहमे लोग
बाड़ में बने कतारें.

नया सवेरा कैसा,
जब आशाएँ सोयीं..
हृदय हूक से भरा हुआ फिर
बह आया है !

किन मूल्यों को प्रात समेटे
बहका आया
उन्मादों की हनक,
क्रोध के चिह्न भाल पर.
सिर की गिनती मात्र लक्ष्य हो
यदि चिंतन का
लानत ऐसे किसी क्रोध
या वाक्-जाल पर !  

चिता-दग्ध है
किन्तु, क्षार है, सम्यक उर्वर
लिए ओस नम तभी हरा
मन रह पाया है !
**************************
-सौरभ
**************************
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 762

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by khursheed khairadi on December 23, 2014 at 12:34pm

किन मूल्यों को प्रात समेटे 
बहका आया 
उन्मादों की हनक, 
क्रोध के चिह्न भाल पर. 
सिर की गिनती मात्र लक्ष्य हो 
यदि चिंतन का 
लानत ऐसे किसी क्रोध 
या वाक्-जाल पर !  

आदरणीय सौरभ साहब कमाल का नवगीत है | अद्भुत शिल्प और विलक्षण भावों का संगम है |शब्दों का चयन और वैचारिक कसावट लासानी है |नवगीत परम्परा को समृद्ध करती हुई रचना हेतू  कोटि अभिनन्दन|सादर बधाई | 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 21, 2014 at 4:35pm

सादर आभार आदरणीय हरि प्रकाशजी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 21, 2014 at 4:30pm

आदरणीया राजेश कुमारीजी, मेरे नवगीत पर आयी आपकी प्रतिक्रिया मुझे दंग कर गयी. आप कितनी गहराई से रचनाधर्मिता को मान देती हैं ! आपकी सदाशयता के प्रति मैं नत हूँ, आदरणीया.


मेरी इस प्रस्तुति के आलोक में जिस तरह से आपने मेरे पिछले वर्ष के इसी विषय पर लिखे नवगीत का मिलान कर कविकर्म और कविमूलक संवेदना को समझने का प्रयास किया है वह एक कवि-हृदय ही कर सकता है. वह भी जिसके हृदय में कविता और साहित्यकर्म के लिए अथाह श्रद्धा हो.


आपके शब्दों के लिए मैं हृदयतल से आभारी हूँ तथा आपके अनुमोदन को इस प्रस्तुति का पारितोषिक मानता हूँ. निस्संदेह यह सामान्य प्रतिक्रिया नहीं है.
सादर आभार आदरणीया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 21, 2014 at 4:24pm

भाई सोमेशजी, अपने नवगीत पर आपकी प्रतिक्रिया को हृदय से स्वीकार करता हूँ. वैसे आपकी अभिव्यक्ति तनिक और संप्रेषणीय होती तो मुझे और आश्वस्ति होती .
शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 20, 2014 at 9:57pm

आदरणीय सौरभ भाई , वर्तमान मे फैले आतंकी ख़ौफ , और जबरन धर्म - पंथ के  नाम पर नफरत की सीख  को बहुत सुन्दर शब्द मिले है , इस सहमी हुई फिज़ा मे नया सवेरा , नव वर्ष की कहाँ सम्भावना बच पाती है । हमेशा की तरह आपकी बेहतरीन नवगीत की अंतिम पंक्तियों में कुछ शुभता की सम्भावना ज़रूर  झलक रही है , जो आवश्यक भी है । आशायें ही तो जीवित होने  का प्रमाण हैं ।  आपको इस नवगीत के लिये ढेरों बधाइयाँ ।

Comment by Hari Prakash Dubey on December 20, 2014 at 6:48pm

नये साल के नये माह का 
मौसम आया.. 
लेकिन सूरज भौंचक 
कितना घबराया है ! ....आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर बहुत बधाई इस सुन्दर रचना पर !सादर !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 20, 2014 at 10:42am

किन मूल्यों को प्रात समेटे 
बहका आया 
उन्मादों की हनक, 
क्रोध के चिह्न भाल पर. 
सिर की गिनती मात्र लक्ष्य हो 
यदि चिंतन का 
लानत ऐसे किसी क्रोध 
या वाक्-जाल पर !  

चिता-दग्ध है 
किन्तु, क्षार है, सम्यक उर्वर 
लिए ओस नम तभी हरा 
मन रह पाया है !-----आज के,आने वाले कल के  हालात की चिंता इन नवगीत की बुनियाद हुई हैं ...नव वर्ष की क्या ख़ुशी मनाएं ?

न जाने चिंगारी अभी कहाँ कहाँ दबी है, कब भड़क जाए क्या पता ! ये चटख रंग की हवा सुकून नहीं देती दमघोटू हवा है ये. आप के शब्द चयन, प्रस्तुतीकरण के सम्मुख नत हूँ आदरणीय.  आप की पिछले नव वर्ष की रचना .. आँखों के गमले में गेंदे आने को हैं ,नये साल की धूप तनिक तुम लेते आना .. आज भी जेहन में मीठी सी सिहरन पैदा करती है.  उसकी खुशबू सब को महकाती है, और, आज की रचना को पढ़कर ये फ़र्क कोई भी महसूस कर सकता है कि कवी या लेखक सामाजिक वातावरण से किस तरह जुड़े होते हैं. उनका शब्द-शब्द परिस्थितियों को जीता है.  भगवान ना करे कभी किसी लेखक की कलम में गेंदों की खुशबू/मुलामियत के स्थान पर बारूद की गंध भरे.

इन्ही शुभकामनाओं के साथ बहुत बहुत बधाई इस सामयिक मर्मस्पर्शी नवगीत हेतु |

Comment by somesh kumar on December 20, 2014 at 12:28am

आपकी इस रचना में यथार्थ -सोच है ,आँख बंद किए ,बिना चिंतन-तर्क के रटना ,विशेष तौर पे धर्म का ऐसा पाठ और उसके दुष्परिणामों  का ताज़ा घटनाक्रम |जो भी हो सफल और सार्थक नवगीत के लिए आपको साधुवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2014 at 12:09am

आदरणीया मजरीजी, विश्वास है आपने प्रस्तुत नवगीत को इत्मिनान से पढ़ लिया है. आपके स्वर में सुनना एक उपलब्धि होगी.
सादर धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2014 at 12:09am

आदरणीय श्याम नारायणजी, आपकी विशिष्ट शैली में दी गयी बधाई सिर आँखों पर.
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थित और मार्गदर्शन के लिए आभार। कुछ सुधार किया है…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थित और मार्गदर्शन के लिए आभार। कुछ सुधार किया है…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आ. भाई वृजेश जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। मतले में यदि उन्हें सम्बोधित कर रहे हैं…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"अनुज बृजेश , पूरी ग़ज़ल बहुत खूबसूरत हुई है , हार्दिक बधाई स्वीकार करें मतले के उला में मुझे भी…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आदरणीय भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और विस्तार से सुझाव के लिए आभार। इंगित…"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आ. बृजेश ब्रज जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है. बधाई स्वीकार करें.मतले के ऊला में ये सर्द रात, हवाएं…"
6 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'

बह्र-ए-मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफमुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन1212  1122  1212  112/22ये सर्द…See More
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपके सकारात्मक प्रयास के लिए हार्दिक बधाई  आपकी इस प्रस्तुति पर कुछेक…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपने, आदरणीय, मेरे उपर्युक्त कहे को देखा तो है, किंतु पूरी तरह से पढ़ा नहीं है। आप उसे धारे-धीरे…"
22 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service