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2122  2122

ये भी जीने की अदा है

ग़म खुशी में मुब्तला है

 

रात भी है चाँद भी और

चाँदनी की ये रिदा है

 

नेस्त हो जाएगा इक दिन

रेत पर जो घर बना है

 

हादसों के दरमियाँ इक

ज़िन्दगी का सिलसिला है

 

मखमली सा लम्स तेरा

सर्द जैसे ये सबा है

 

तुझमें है यूँ अक्स मेरा

तू कि जैसे आइना है

 

मैं नहीं तन्हा सफ़र में

साथ अपनो की दुआ है

 

छोर पर नाकामियों के

मंज़िलों का रास्ता है

 

साँस ही है इब्तिदा और

साँस ही तो इंतिहा है

 

नाखुशी ज़ाहिर करो तुम

दिल जलाना क्या बजा है

 

क्या कहूँ मैं क्या लिखूँ अब

चश्मे नम से क्या दिखा है

(रिदा= चादर, नेस्त= ध्वस्त, लम्स= स्पर्श, बजा= ठीक)

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 792

Comment

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Comment by Neeraj Nishchal on December 12, 2014 at 4:08pm
भाई सिज्जू जी बहुत बहुत और बहुत उम्दा गज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये ।
Comment by Rahul Dangi Panchal on December 12, 2014 at 3:01pm
उम्दा वाह! बहुत खूब!
Comment by somesh kumar on December 12, 2014 at 9:40am

छोर पर नाकामियों के

मंज़िलों का रास्ता है

 

साँस ही है इब्तिदा और

साँस ही तो इंतिहा है

आखिरी में यही की 

छोर पर नाकामियों के

मंज़िलों का रास्ता है

 

साँस ही है इब्तिदा और

साँस ही तो इंतिहा है

 बेहद शानदार गज़ल 

 

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