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मुझे जो कहना है कहूँगा
तुम चाहे जो सजा दो
छड़ी मार या तड़ी पार
फिर भी कहूँगा बारम्बार.
क्यों सपने दिखाते हो?
अपनी बातों में उलझाते हो
देश अब कराह रहा है
फिर भी तुम्हे सराह रहा है .
सपनों के साकार होने का
वख्त शायद आ गया है
अच्छे दिन कब आएंगे?
हर  जेहन में आ गया है.
जिस उंगली ने वोट किया
वो अब उठने लगी है,
शायद तुन्हारी इक्षाशक्ति
तुमसे रूठने लगी है.
कुछ करो न चमत्कार
जिसे जनता करे स्वीकार
फिर होगी जयकार.

विजय प्रकाश
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on November 27, 2014 at 10:11pm
देश अब कराह रहा है
फिर भी तुम्हे सराह रहा है .
बहुत सही कहा आपने आदरणीय विजय प्रकाश जी , बहुत बहुत बधाई इस सारगर्भित प्रस्तुति के लिए , सादर।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 27, 2014 at 10:05pm

आरी अति सुन्दर कविता आ० विजय प्रकाश जी, हार्दिक बधाई।

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