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ग़ज़ल - रात गहरी पहले तो आती ही है

2122 2122. 212

बात आ ना जाए अपने होठ पर
देखिए पीछे पड़ा सारा शहर

मत कहो तुम हाले दिल चुप ही रहो
क्यों कहें हम खुद कहेगी ये नजर

देखो कलियाँ खुद ही खिलती जाएँगी
गीत अब खुद गुनगुनाएँगे भ्रमर

हाथ थामें जब चलेंगे साथ हम
वक्त थम जाएगा हमको देखकर

रात गहरी पहले तो आती ही है
पर पलट करती है ऐलाने- सहर

पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ketan Kamaal on November 25, 2014 at 12:03pm

बात आ 1 ना जाए अपने होठ पर Ghazal Men Hamesha  ना ko 1 Matrik Mana Jata Hai 
देखिए पीछे पड़ा सारा शहर

मत कहो तुम हाले दिल चुप ही रहो
क्यों कहें हम खुद कहेगी ये नजर Waaah Khoobsurat Sher Daad Hazir Hai 

देखो कलियाँ खुद ही खिलती जाएँगी
गीत अब खुद गुनगुनाएँगे भ्रमर Waaaah Kya kahne 

हाथ थामें जब चलेंगे साथ हम
वक्त थम जाएगा हमको देखकर Bahut achcha Manzar Hai 

रात गहरी पहले तो आती ही है  ye Sher Lay Men Atak Raha Hai Aik Baar Dekhiye Phir se 
पर पलट करती है ऐलाने- सहर

Comment by Chhaya Shukla on November 25, 2014 at 11:53am

मेरी पसंदीदा बहर पर एक खूबसूरत गजल पढने को उपलब्ध कराई आपने
दिली दाद कबूल फरमाएं बहन पूनम जी !

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2014 at 11:20am

आदरणीया पूनम जी इस उत्तम गजल के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by umesh katara on November 25, 2014 at 7:28am

बढ़िया है पूनम जी,,,सुन्दर लिखा है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 24, 2014 at 10:29pm

आदरनीया पूनम जे , बढ़िया ग़ज़ल कही ! आपको हार्दिक बधाइयाँ गज़ल के लिये !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 24, 2014 at 10:13pm

आदरणीया पूनम शुक्ला जी, एक पुरकश ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, ख्यालात और शिल्प की खूबसूरती देखते ही बनता है, दाद कुबूल करें मोहतरमा।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 24, 2014 at 7:18pm

पूनम जी

बहुत बढ़िया i सुन्दर i

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