डोभाल जी का मकान बन रहा था, बड़े ही धार्मिक व्यक्ति थे और प्रकृति प्रेमी भी,एक माली भी रख लिया था ,उसका कार्य एक सुन्दर बगीचे का निर्माण करना था ,वह भी धुन का पक्का था , उसने तरह-तरह के फूल ,घास ,पेड़ लगा दिए और कभी –कभी वह सजावट के लिए रंग बिरंगे पत्थर भी उठा कर ले आता और बड़े अच्छे शिल्पी की तरह उन्हें पौधों के इर्द-गिर्द सजाता ,उस बगीचे में अब तरह तरह के फूल खिलने लगे थे ,वही नीचे एक बड़ा काला सा पत्थर भी था जिस पर माली अपना खुरपा रगड़ता और पौधों के नीचे से खरपतवार निकालता , अब सब फूल उस पत्थर को हेय दृष्टी से देखते और कहते ,यार कैसा तुच्छ जीवन है तुम्हारा, रोज माली के खुरपे से रगड़े जाते हो,” काला -पत्थर” हमेशा चुप रहता, इधर मकान भी तैयार हो गया ,कुछ दिनों बाद वे सारे पुष्प, गृह-प्रवेश के दिन पूजा की थाली में सजा दिए गए थे ,इधर उसी माली ने उस काले पत्थर को तराश कर शिवलिंग का रूप दे दिया था और डोभाल जी का पूरा परिवार,पंडित जी के मंत्रोचार के साथ उसकी पूजा कर रहा था और सभी लोग एक-एक करके उन पुष्पों को उस शिवलिग पर अर्पित करते जा रहे थे I
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद विनोद जी !
आपका हार्दिक आभार आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी !
आदरणीय हरी प्रकाश जी ..सन्देश प्रद इस सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
आपका हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी ! सादर
आपका हार्दिक आभार,vijay nikore सर!
समय बड़ा बलवान है | जिस पत्थर पर माली खुरपा रगड़ता था, वही पत्थर शिवलिंग के रूप में पूजा जा रहा है और फूल चढ़ाए
जा रहे है | सुंदर लघु कथा के लिए बधाई श्री हरी प्रकाश डूबे जी
लघु कथा में अच्छा संदेश दिया है। बधाई।
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय laxman जी।
आदरणीया अर्चना जी रचना की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत आभार, बहुत खूब कहा आपने ......कभी कूटी कभी वो रौंदी जाती है / उसी मांटी की मूरत पूजी जाती है
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