For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छंद- गीतिका

लक्षण – इसके प्रत्येक चरण में (14 ,12 )पर यति देकर 26 मात्रायें होती हैं I इसकी 3सरी, 10वीं, 17वीं और 24वीं मात्रा  सदैव लघु होती है I चरणांत में लघु –दीर्घ होना आवश्यक है

 

मिट चुकी अनुकूलता सब अब सहज प्रतिकूल हूँ I

मर चुका जिसका  ह्रदय वह एक  बासी फूल हूँ II

 

किन्तु तुम  संजीवनी हो ! प्राणदा हो ! प्यार हो !

हो अलस  संभार  जिसमे  मस्त-मदिर बहार हो II

 

मै सहज आश्वस्त सा  था मुग्ध था कल्याण में I

तुम अचानक आ बसे  क्यों  सुप्त मेरे प्राण में II

 

जल उठी बिजली हृदय में स्वप्न सच लगने लगा I

देह  का  बंधन  न तोडूँ  भाव  यह जगने लगा II

 

आज मै  निज  में नहीं  हूँ फूल  बासी ही सही  I

यदि  बहारें  संगिनी  है  तो  उदासी  भी  नहीं II

 

सत्य है  हर बावला  मन सत्य  से ही  भागता  I

समय पर  जगता नहीं  है  बाद में फिर जागता II

 

इस तरह वह  फूल जिसका रूप-यौवन ढल चुका  I

धूप में, तम में, उपल में तन–बदन भी जल चुका II

 

है न सौरभ, पत्र  जिसके  भी  नहीं  हरिताभ हैं  I

है  नहीं  मकरंद  जिसमे  रस नही  न रसाभ है II

 

सोचता  है  सुरभिमय   हूँ  सजल  मेरे पात हैं  I

म्लान थोडा  ही हुआ हूँ  मृदुल अब  भी गात है II 

 

क्या हुआ निर्माल्य  हूँ यदि  देवता पर चढ़ चुका I

और भव  की राह  पर भी  वेग से मैं बढ़ चुका II

 

पर उन्हें  कहता न  कोई जो  शिलाओं में कढ़े  I

भव्य मंदिर स्वर्ण  अथवा रौप्य  से जिनके मढ़े II

 

वे अनादि, अनीह, अव्यय वन्द्य है निष्काम हैं  I 

व्यक्त है  जो सहज वे  राम  हैं ! अभिराम हैं  II

 

हम जिन्हें निर्गुण-सगुण के भेद द्वय से जानते I

पूज्य या  आदर्श अथवा  ईष्ट जिनको  मानते II

 

यदि उन्हें भी नव-प्रफुल्लित सुमन की नित चाह है I

हम  सरीखे  पामरो  की  कौन सी  फिर  राह है II

 

भिन्नवर्णा  पुष्प-रज  यदि  देवों  का  अभीष्ट है I  

देव–विग्रह  अन्य  का  पद-रज  हमें भी  ईष्ट है II

 

घात मन  में  भावना  का  पुष्प  यूँ  करता रहा I

लुब्ध  मन में  लालसा  का  रंग वह  भरता रहा II

 

काम-पीड़ित  पुहुप-चिंतन   कलुष  का  सन्देश है I

पाप  है कुविचार है  यह  व्यर्थ  का  आवेश  है II

 

वासना-घटकर्ण    निर्दय  सत्य  ही  सोता  नहीं I

दैव !  पापी  कामना  का  अंत  है  होता  नहीं II

 

अस्तु  बासी  फूल का  यूँ  सोचना  इक भूल है I

हर तरह  निर्माल्य  तो बस मात्र  बासी  फूल है II

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 846

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 11, 2014 at 4:57pm

जीतू भैया

प्यार से मनोबल बढ़ता है i आपसे सदैव स्नेह मिलता है i  सस्नेह i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 11, 2014 at 4:56pm

विजय सर i

आपका आशीर्वाद मिलता रहे i यही कामना है i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 11, 2014 at 4:54pm

छाया जी

आपका बहुत बहुत आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 11, 2014 at 4:54pm

आदरणीय निकोर सर i

आपक प्यार मेरा सम्बल है i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 11, 2014 at 4:52pm

आदरणीय योगराज जी

आपकी संस्तुति से मनोबल निश्चय ही बढ़ता है i आपका आभारी हूँ i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 11, 2014 at 4:51pm

खुर्शीद जी

आपका प्रोत्साहन सदैव मिलता हूँ i आभारी हूँ मित्र i

Comment by somesh kumar on November 11, 2014 at 4:05pm

आज में निज में नहीं फूल बासी ही सही /यदि बहारें संगिनी हैं तो उदासी भी नहीं ,बेहद सरस एवं सुंदर संदेश देती इस गीतिका को साधुवाद |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 11, 2014 at 10:32am

जीवन के अनुभवों को आत्मसात कर अंतर्मन के भावों को सुंदर शब्दों में अभिव्यक्त करती सुंदर और सरस गीतिका छंद रचना के लिए अतिशय बधाईयाँ आद डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 11, 2014 at 8:39am

आपका अनुभव और उसके साथ, जीवन के गहरे व् गंभीर भाव आईने की तरह स्पष्ट दिख रहे है रचना में. बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय डा.गोपाल जी

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 10, 2014 at 9:31pm

वाह ! वाह आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , अति सुन्दर।  हर पंक्ति अपने में पूर्ण और आकर्षक है , किसे उद्धृत करूँ , किसे न करूँ , दुसरे के साथ अन्याय होगा।  बधाई और बधाई , बस बधाई।  सादर।  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service