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गीत: रँग जीवन हैं कितने

*रँग जीवन हैं कितने.

सुख अनंत मन की सीमा में,
दुख के क्षण हैं कितने ?

अभिलाषा आकाश विषद है,
है प्रकाश से भरा गगन.
रोक सकेंगे बादल कितना,
किरणों का अवनि अवतरण.
चपला चीर रही हिय घन का,
तम के घन हैं कितने ?
..दुख के क्षण हैं कितने ?

काल-चक्र चल रहा निरंतर,
निशा-दिवस आते जाते,
बारिश सर्दी गर्मी मौसम,
नव अनुभव हमें दिलाते.
है अमृतमयी पावस फुहार,
जल प्लावन हैं कितने ?
..दुख के क्षण हैं कितने ?

अनजानों की ठोकर सह लें,
क्षम्य नहीं आपस में भूल.
ये मानव रिश्ते भी क्या हैं,
आज फूल कल बनते शूल.
कभी मलय से सौम्य सुगन्धित,
दग्ध अगन हैं कितने ?
.. दुख के क्षण हैं कितने ?

छल फरेब को कैसे मापें,
कौन सान कसें ईमान.
निर्वासित क्यों शौर्य वर्यता,
क्यों कुंठित हो रहे ज्ञान.
आदर्शों की रसवंती में,
कुत्सित्जन हैं कितने ?
..दुख के क्षण हैं कितने ?

स्वर्ग-नर्क सब यहीं धरा पर,
अपने कर्मों की छाया.
सुख-दुख में परिमार्जन करना,
लोभ-मोह मन की माया.
विस्तृत होते इन्द्रधनुष से,
रँग जीवन हैं कितने ?
सुख अनंत मन की सीमा में,
दुख के क्षण हैं कितने ?
**हरिवल्लभ शर्मा

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Dr. Vijai Shanker on October 17, 2014 at 9:40pm

अनजानों की ठोकर सह लें,
क्षम्य नहीं आपस में भूल.
ये मानव रिश्ते भी क्या हैं,
आज फूल कल बनते शूल.
गंभीर , सुन्दर , फिर यह भी सही कि ".दुख के क्षण हैं कितने ?"
आशा भी , बहुत बहुत बधाई आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा जी , इस प्रस्तुति पर।

Comment by somesh kumar on October 17, 2014 at 8:00pm

जीवन के सभी रंगों को समेटता काव्य-कैनवास|

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 17, 2014 at 6:54pm

हरि वल्लभ जी

कोई कोना आपने नहीं छोड़ा i पूरी  कायनात घूम आये i बहुत सुन्दर i

Comment by Shyam Narain Verma on October 17, 2014 at 5:43pm

" सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ .................. "

सादर...........

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