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पलकों के महके उपवन में
गीतों के सारे सरगम में
हर उलझन में हर सुलझन में
कोई और नहीं तुम ही थे

कुछ बंद किताबों के पन्ने
फिर फिर से जैसे खुल जाए
आखर आखर बन सरगम ज्यो
प्राणों में आकर घुल जाए
नयनो की मोहक चितवन में
कोई और नहीं तुम ही थे

महकी महकी सी साँसों में
तेरी मोहक खुशबू बस जाए
हरपल पलछिन रात और दिन
यादे तेरी सज सज जाएँ
सपनो के खिलते गुलशन में
कोई और नहीं तुम ही थे

श्वाँस श्वाँस मधुरिम स्पंदन ले
मन चातक कुछ भी न कह पाए
नयनो की मधुरिम भाषा सुन
विस्मित अधर मूक से रह जाए
जो तस्वीर बसी मन दर्पण में
कोई और नहीं तुम ही थे
------प्रियंका े

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by khursheed khairadi on September 17, 2014 at 9:15am

आदरणीय प्रियंका जी सरस एवं मोहक काव्य रचना है ,हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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