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घर और मायका (लघुकथा)

किचेन से रश्मि की आवाज आई ...... भाभी जरा मेरे कपड़े धुल देना, खाना बनाने के बाद धुलुंगी तो काॅलेज के लिए देर हो जायेगी! इतना सुनते ही सुमन का जैसे पारा गरम हो गया ...... बड़बड़ाते हुए बोली... सभी ने जैसे नौकर समझ लिया है, कुछ ना कुछ करने के लिए बोलते ही रहते हैं, आराम से टी0वी0 भी नही देखने देतें ........ देखिये जी ! अगर इसी तरह चलता रहा तो मैं मायके चली जाउँगी, मेरी भाभी बहुत अच्छी हैं, घर का सारा काम करती हैं,  वहाँ मुझे कुछ नही करना पड़ता, और मैं आराम से टी0वी0 सीरीयल भी देख लेती हूँ ...........।

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Pawan Kumar on September 4, 2014 at 9:50am

""आदरणीया जितेन्द्र भईया  सादर अभिवादन..... प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ।"

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2014 at 11:59am

बहुत बढ़िया लघुकथा. यही सच है आज के परिवारों में. कुछ एक टंकण त्रुटी है सुधीजन परामर्श देंगे. बधाई आदरणीय पवन जी

Comment by Pawan Kumar on August 30, 2014 at 3:30pm

""आदरणीया शुभ्रांशु पाण्डॆय जी  सादर अभिवादन! प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार! "

Comment by Pawan Kumar on August 30, 2014 at 3:28pm

""आदरणीया राजेश कुमारी जी  सादर अभिवादन..... प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ।"

Comment by Pawan Kumar on August 30, 2014 at 3:27pm

"आदरणीय डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी सादर अभिवादन.... प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ।"

Comment by Shubhranshu Pandey on August 30, 2014 at 11:06am

आदरणीय पवन जी,

मानव मनोविज्ञान पर सुन्दर कथा.  पारिवारिक समस्याओं मे से एक बिन्दु को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है.

सादर.


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Comment by rajesh kumari on August 29, 2014 at 5:36pm

दोयम मानसिकता का सुन्दर नमूना पेश किया है ...ननद का खाना बनाना या कोई भी काम दिखाई नहीं देता वही मायके जाकर  दूसरी लड़की की ननद होती है तो तेवर अलग होते हैं ...यही सच्चाई भी है बधाई आपको इस लघु कथा के लिए 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 29, 2014 at 12:04pm

पवन कुमार जी

बहुत बढ़िया  i व्यंगार्थ सुन्दर है i

कृपया ध्यान दे...

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