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ग़रीब के हाथ से निवाला न छीनिए (ग़ज़ल 'राज')

12122 12122 1212

कभी लबों तक पँहुचता प्याला न छीनिए

 ग़रीब के हाथ से निवाला न छीनिए  

 

यतीम का बचपना निराला न छीनिए

जमीन, दरगाह या शिवाला न छीनिए

 

बड़ी नहीं कोई चीज़ तहजीब से यहाँ      

नक़ाब, सिर पे ढका दुशाला न छीनिए

 

नसीब में क्या लिखा यहाँ कौन जानता          

किसी जवाँ दीप का उजाला न छीनिए

 

समान हक़ है मिला सभी को पढ़ाई का

गरीब बच्चों से  पाठ शाला न छीनिए 

 

जुड़े खुदा से वहाँ इबादत के तार हैं

उन उँगलियों में थिरकती माला न छीनिए

पुछल्ला ---

 यकीं नहीं है कि वो शराफ़त दिखायेगा 

 कभी किसी बेवड़े से हाला न छीनिए 

------------------------------

(मौलिक और अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 28, 2014 at 9:47am

जितेन्द्र गीत  भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया ..पुछल्ले के लिए भी :)))

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 27, 2014 at 11:09pm

. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण गजल, पुछल्ला तो बहुत ही बेहतरीन रहा. :))) दिली दाद कुबूल कीजियेगा आदरणीया राजेश दीदी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2014 at 10:08pm

आ० सुरेन्द्र कुमार भ्रमर जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ ,दिल से बहुत- बहुत आभार आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2014 at 10:07pm

आ० डॉ.आशुतोष जी ,आपको ग़ज़ल उसके भाव पसंद आये आपका अनुमोदन मिला तहे दिल से आभारी हूँ  

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 27, 2014 at 7:04pm

यतीम का बचपना निराला न छीनिए

जमीन, दरगाह या शिवाला न छीनिए

 

बड़ी नहीं कोई चीज़ तहजीब से यहाँ      

नक़ाब, सिर पे ढका दुशाला न छीनिए

आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत खूब लिखा आप ने काश लोग गौर करें तो ये समाज सुधर ही जाए सुन्दर
आभार
भ्रमर ५

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 27, 2014 at 2:46pm
आदरणीया राजेश जी ..बहत ही सुंदर ग़ज़ल है पाठको के शंका समाधान की स्वस्थ परम्परा के कारण ग़ज़ल के मर्म को भली भांति समझने में मदद मिलती है ..इस सुंदर सन्देश प्रद ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2014 at 12:05pm

आ० लक्ष्मण भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ | दिल से आभार आपका ,हाँ पहुँचता में ता की मात्रा गिराई गई है| 


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Comment by rajesh kumari on August 27, 2014 at 12:02pm

आ० नरेन्द्र सिंह चौहान जी ,आपको ग़ज़ल के भाव पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे  दिल से आभारी हूँ |

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2014 at 11:35am

आदरणीया राजेश बहन , सबसे पहले इस खुबसुरत  गजल के लिए हार्दिक बधाई ।

साथ ही एक संशय है आपने  मतले में पहुचता में ता की मात्रा गिराई गयी है या ध्वनि  ही लधु बन रही है मार्गदर्शन करें । 


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Comment by rajesh kumari on August 27, 2014 at 10:57am

आ० श्याम नारायण वर्मा जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया आपका सादर.

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