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कुछ सामयिक दोहे / जवाहर

मानसून की देर से, खेतहि फटे दरार,

ताके किसना मेघ को, आपस में हो रार.

मानसून की अधिकता, बारिश हो घनघोर

उजड़ा घर अरु खेत अब, देखत सब चहु ओर

तीव्र पानी प्रवाह से,  वन गिरि भी थर्राय

नर पशु पानी में बहे, किसको कौन बचाय .

उथल पुथल भइ जिंदगी, कहते जिसे विकास.

जलवायु दूषित हुई,  आम हो गया ख़ास

राग द्वेष का जोर है, प्रीती नहीं सुहाय,

भाई से भाई लड़े, संचित धन भी जाय..

फैशन की अब होड़ है, फैशन डूबे लोग.

फैशन में पोषण घटे, बचा न कोइ निरोग.

(मौलिक व अप्रकाशित)

जवाहर लाल सिंह  

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2014 at 11:02am

आ० भाई जवाहर जी , बहरीन समसामयिक दोहों के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 19, 2014 at 10:58am

सुंदर दोहे रचे है | हार्दिक बधाई श्री जवाहर भाई - अंतिम दोहे का अंतिम चरण पुनः देखले -

बचा न कोई निरोग - लय भंग लग रही है | इस -  "कैसे रहे निग्रोग" किया जा सकता है |

सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 18, 2014 at 9:51pm

एक -एक दोहा सही कहता है. बधाई आदरणीय जवाहर जी

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 18, 2014 at 9:06pm

हार्दिक आभार आदरणीया कल्पना मिश्रा बाजपेयी जी!

Comment by kalpna mishra bajpai on August 18, 2014 at 8:41pm

फैशन की अब होड़ है, फैशन डूबे लोग.

फैशन में पोषण घटे, बचा न कोइ निरोग.................. इस में कोई दोराहें नहीं सही कहा आप ने । बहुत बधाई 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 18, 2014 at 7:49pm

प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय श्री श्याम नारायण वर्मा जी! 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 18, 2014 at 7:48pm

प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी! 

Comment by Shyam Narain Verma on August 18, 2014 at 12:03pm
" अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई ................. "
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 18, 2014 at 11:45am
पानी , प्रदूषण. प्रीति , सभी कुछ समेटते दोहे बहुत अच्छे हैं , बधाई जवाहर लाल जी इन प्रेरक दोहों के लिए .

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