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कभी मेरी नज़रों से देखो ,

तब तुम समझोगी शायद ,
कि मेरी दुनिया कितनी हसीन है......
 
बड़ी- बड़ी खिड़कियाँ नहीं हैं ,
पर, एक झरोखा है लटका हुआ 
जिससे हर सवेरे सूरज मुझे आवाज़ लगाता है....
 
कुछ खट्टी- मीठी , चटपटी -सी यादें हैं
जीरा बट्टी की गोलियों -सी
चखते ही आँखों से पानी टपक पड़ता है.....
 
घर में सामान कम है
क्यूंकि जगह नहीं है खाली
सपने सजा रखे हैं जिंदगी ने ......
 
कुछ लिखूं जो कभी
लफ़्ज़ों की अहमियत बढ़ जाती है
प्यार की स्याही जो भरी है कलम में ......
 
बड़ी सुंदर है ये मेरी छोटी-सी दुनिया
कभी चाहो, तो आकर महसूस करना ,
या सुनो , तुम यहीं आकर बस जाना !

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Comment

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Comment by Akhileshwar Pandey on March 1, 2011 at 5:12pm
आपकी कविता पढ़कर कई ख्यालात उभर आये. यूँ ही लिखते रहिये.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 1, 2011 at 9:18am
एक झरोखा है लटका हुआ
जिससे हर सवेरे सूरज मुझे आवाज़ लगाता है....वाह वाह क्या बात है , खुबसूरत ख्यालात |
जीरा बट्टी की गोलियों -सी
चखते ही आँखों से पानी टपक पड़ता है.....भई आप तो छुटपन की  याद ताजा करा दिए |
बड़ी सुंदर है ये मेरी छोटी-सी दुनिया
कभी चाहो, तो आकर महसूस करना..........वोहो ,  रेशम सी मुलायम ख्यालात बेहद करीने से सजाये है ,
वीरेंदर भाई इस खुबसूरत कविता हेतु बधाई स्वीकार करें |
Comment by विवेक मिश्र on March 1, 2011 at 9:07am
आपकी इस कविता में ढेर सारे मासूम भाव सिमटे हुए है. हार्दिक बधाई.

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