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"अरे पनीर की सब्ज़ी कहा है ? जल्दी लाओ , यहाँ ख़त्म हो गयी |"

बड़े भैया ने आवाज़ लगायी और आगे बढ़ गए | कई पंगतों में लोग बैठ कर भोजन कर रहे थे , काफी गहमागहमी थी दरवाजे पर | सारे रिश्तेदार और अगल बगल के गांव से भी लोग खाने आये हुए थे | थोड़ी दूर ज़मीन पर कुछ और लोग भी बैठे थे जो हर पंगत के उठने के बाद पत्तल वगैरह बटोरते , उसे ले जाकर किनारे रख देते और जो कुछ भी खाने लायक बचा होता था , वो सब उनके बर्तनों में रख लेते थे |
खटिया पर लेटे हुए बाबूजी सब देख रहे थे | उसके दिमाग में पिछले कुछ सालों की घटनाएँ घूमने लगीं | माँ एकदम से बीमार पड़ी और उसने बिस्तर पकड़ लिया | बड़ा बेटा विदेश में था , छोटे के साथ ही रहते थे दोनों | खाने के नाम पर पतली खिचड़ी मिल जाती थी माँ को , लेकिन शायद बुढ़ापे में इच्छाएं और जोर मारने लगती हैं , माँ की भी इच्छा होती थी कि वो कुछ चटपटा खाए , पनीर तो बहुत प्रिय था उसे | एक आध बार कहा भी उसने कि पनीर खाने का मन है लेकिन वो कह नहीं पाये बहु से |
अचानक वो उठे , धीरे से एक पनीर का डोंगा उठाया और ले जाकर उन ज़मीन पे बैठे लोगों को दे दिया | उन लोगों की ख़ुशी का पारावार नहीं था और बाबूजी ने एक नज़र आसमान की ओर देखा और उनकी आँखों से दो बूँद आँसू टपक पड़े |

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on July 30, 2014 at 2:55pm

आभार लक्ष्मण प्रसादजी..

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 30, 2014 at 1:45pm

विनय जी

बाबू जी ने एक नजर आसमान कीओर देखा ------ लघु कथा का यही सार है i  अति सुन्दर i

Comment by coontee mukerji on July 30, 2014 at 12:51pm

आपकी लघु कथा...बूढ़ी काकी ...की याद दिला दी....शायद  अब भी ऐसा होता होगा...?    लेकिन मैं नहीं जानती बूढ़ी काकी नामक कहानी किस लेखक की कालजयी रचना है/सादर.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 30, 2014 at 11:09am

माँ तो इच्छा मार कर रह जाती थी जिसे पनीर बहुत पसंद था, गरीबों को झूटन में से पनीर इकट्ठी करते देख पनीर का भरा 

डोंगा उनके सामने रख दिया | सच्चे मन से श्राद्ध  करने का भाव लिए रची सुंदर रचना के लिए बधाई 

Comment by विनय कुमार on July 30, 2014 at 1:13am

आभार गिरिराज भण्डारीजी एवम जितेंद्रजी..

Comment by विनय कुमार on July 30, 2014 at 1:12am

आभार वंदनाजी , डॉ विजय शंकरजी एवम राजेश कुमारीजी..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 29, 2014 at 11:17pm

आपकी लघुकथा बहुत ही सुंदर सार्थक सन्देश देती है आदरणीय विनय जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 29, 2014 at 10:47pm

आदरणीय विनय भाई , सही में देखें तो उतना खाना खिलाना ही सार्थक हुआ जितना गरीबों में बंटा |  आपको लघु कथा के लिए बधाइयाँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 29, 2014 at 10:18pm

बहुत अच्छी लघु कथा जिसके भाव दिल को छू गए बधाई आपको |

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 29, 2014 at 9:43pm
सुन्दर , सैद्धांतिक . श्राद्ध का वैचारिक आधार यही है . इस लघु कथा के लिए बधाई.

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