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नज़र मुझ पे कर दे ......गज़ल

एक गज़ल 

वज्न- 122 122 122 12

मेरे दिल को तुझसे वफ़ा चाहिए 

न जख्म ए जिगर फिर नया चाहिए 

~

है अरसा हुआ मै हूँ अब भी वहीँ 

तेरे दिल से निकली सदा चाहिए 

~

जो बीमार को कर सके है भला 

किसी हाथ में वो शिफ़ा चाहिए 

~

ये हैं इन्तेज़ामात तेरे ख़ुदा 

है किसने कहा इब्तिला* चाहिए                               दुःख 

~

जो दिल हैं परेशां जफ़ा से यहाँ 

महज़ उनके खातिर दुआ चाहिए 

~

अजी संगदिल है वो मेरा सनम 

नज़र मुझपे कर दे तो क्या चाहिए 

~

~वेदिका                           

[मौलिक/ अप्रकाशित] 

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Comment by gumnaam pithoragarhi on July 17, 2014 at 9:24pm

हुत सुंदर गजल कही,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बधाइयाँ.......

Comment by mrs manjari pandey on July 17, 2014 at 7:41pm
आदरणीया वेदिका जी उम्दा लिए आपको बधाइयाँ
Comment by Zaif on July 17, 2014 at 6:11pm
Vry nice ma'am!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 17, 2014 at 3:42pm

सारी , मक्ता नहीं कहेंगे आख़िरी शेर है i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 17, 2014 at 3:39pm

  

 

आदरणीया

बेहतरीन मक्ता  i लाजवाब i  संग्रहणीय i

सादर i

Comment by वेदिका on July 17, 2014 at 3:04pm
आभार व्यक्त करती हूँ आ0 नरेन्द्र सिंह जी! आ0 शेखर जी!
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 16, 2014 at 9:29pm

बहुत सुंदर गजल कही आपने, आदरणीया वेदिका जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on July 16, 2014 at 7:39am
बहुत खूब
Comment by वेदिका on July 16, 2014 at 12:49am
आपका ह्रदय तल से आभार आ0 सौरभ जी! आ0 राजेश दीदी जी! आ0 सुशिल जी! आ0 मदन मोहन जी!
Comment by वेदिका on July 16, 2014 at 12:48am
आपका बहुत बहुत आभार आ0 गोपाल जी! आ0 शिज्जू जी! आ0 सविता मिश्र जी! आ0 गिरिराज जी!

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