For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काम से थककर चूर पत्नी ने कमर पीड़ा से कराहते हुए दर्द भरे स्वर में कहा - ‘हाय रा s sम !’

बिस्तर पर लेटे –लेटे पति ने पत्नी की व्यथा सुनी, बुरा सा मुंह बनाया और जोर से आह भरी – ‘हाय सी s sता !'

 

 

[अप्रकाशित व् मौलिक]

Views: 998

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 10, 2014 at 2:51pm

महनीया

आपका ह्रदय से आभार i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 10, 2014 at 2:25pm

नारी के प्रति पुरुष की असंवेदनशीलता का यह प्रारूप बहुत ही सामान्य है...

आपने दो पंक्तियों में एक क्षण विशेष के साथ ही एक मानसिकता को शब्दों से चित्रांकित किया है 

कम शब्दों में सहजता से अपना असर छोड़ती इस लघुकथा पर हार्दिक बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 8, 2014 at 10:43am

आदरणीय सौरभ जी

आलोचना की ग्राह्यता पर मैंने अपने सामान्य  विचार दिए थे i किसी रचना विशेष से आशय नहीं था i  सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 8, 2014 at 10:40am

निलेश जी

आपके शब्दों से बड़ा बल मिला i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 8, 2014 at 10:38am

आदरनी शरदिंदु जी

सादर आभार i आपके प्रोत्साहन से बल मिला i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 8, 2014 at 10:36am

आदरणीय योगराज जी

आपके विचारो ने संजीवन सा प्रदान किया  i आभार आदरणीय i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 11:23pm

आदरणीय गोपालनारायनजी,

//मै आलोचना को सदैव सकारात्मक लेता हूँ i मुझे खुशी होती है कि आप जैसे विद्वान मेरी रचना पर इतना समय देकर मार्ग प्रशस्त करते है //

मैंने आपकी इस लघुकथा पर कोई टिप्पणी ही नहीं की है. न कोई कथा सुलभ विचार दिये हैं.

आपकी प्रस्तुति पर आये मंतव्यों पर मैंने अपने विचार अभिव्यक्त किये हैं.

सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 7, 2014 at 11:14pm

मुझे कथा-कहानी की अधिक समझ नहीं है लेकिन जो पढ़ा उसमे चुटकुले या हास्य जैसा तो कुछ भी नहीं है लेकिन ये किसी के कटाक्ष पर कटाक्ष सा लगा ..
कुल मिला कर बात संप्रेषित हुई ...और अभिव्यक्ति का प्रथम और अंतिम उद्देश्य वही है ..
सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on July 7, 2014 at 10:47pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन जी, मैं तो स्तब्ध हो गया आपकी इस लघुकथा को पढ़कर....इसे समझने के लिए जो संवेदनशीलता चाहिए वह तो बहुत से पाठकों में मिल जाएगा, लेकिन इसके मर्म को स्वीकार करने के लिए जिस ईमानदारी और साहस की आवश्यक्ता है......कमी उसी की होती है.....आपने एक सबल वक्तव्य इस सार्थक कथा के माध्यम व्यक्त किया है...यही रचना की सार्थकता है, रचनाकार की सफलता है. अनेक साधुवाद.

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 7, 2014 at 9:30pm

लघुकथा एक लम्हा चुराने का नाम है, और वो लम्हा बेहद खूबसूरती से कैमरे की आँख से आ० डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ने क़ैद किया है. एक पीड़ भरे स्वर के प्रतिउत्तर में ऐसी असंवेदनशील प्रतिक्रिया बहुत कुछ कह गई है. बाकी तो सोच अपनी अपनी - ख्याल अपना अपना। लेकिन मेरे लिए :

(बकौल शायर)
उनको खुद मिले है खुद की जिन्हें तलाश
मुझ को तो बस इक झलक मेरे दिलदार की मिले।

और मुझे वो झलक मिल गई है, अत:मेरी दिली बधाई स्वीकारें आ० डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service