अहंकार ना
कभी आ जाये हमें
दिन न आये |
मनमोहन
छेड़े बंसी की तान
झूमती आऊं |
तनहा तुम
देगा न कोई साथ
खयाल रहे |
प्रकृति हमें
देती सब संपदा
लगाएं वृक्ष |
समेट रही
आँचल में अपने
पुष्प बिखरे |
अजनबी हम
चलते रहे साथ
इक दूजे के |
माता का हाथ
रहे सदैव माथ
धन्य जीवन |
पारिजात है
जमीं पर बिखरे
समेटूँ सारे |
मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बृजेश जी ..आदरणीय बागी जी गलती स्वीकार करती हूँ ..आगे से ख्याल रखूँगी | सादर
सुंदर प्रस्तुति पर बधाई आपको आदरणीया मीना दीदी
आदरणीया मीना जी, इस प्रस्तुति पर मैं बधाई प्रेषित कर रहा हूँ, यदि बृजेश भाई न लिखे होते तो मैं लिखता, सहमत हूँ आपसे बृजेश जी।
अद्भुत मीना जी /बहुत चुने शब्द /बहुत सुन्दर भाव / आपसे एक सशोधन चाहूँगा--
अजनबी थे
चलते रहे साथ
इक दूजे के |
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