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सच-झूठ,दिन-रात
बनाते रहते हैं लोग.
औरत और आदमी को
अलगाते रहते हैं लोग.
हर रोज जीवन को
उलझाते रहते है लोग.
कभी बनाते है भोग्या
तो कभी चढ़ाते हैं भोग.
नर-नारीपूरक हैं,
नही समझ पाते लोग.
दोनो का सम- भाव हो
कब आएगा यह संजोग?

विजय प्रकाश शर्मा
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 29, 2014 at 8:22pm

आ० विजय शॅंकर जी, आपने इस कविता के भावों की व्याख्या कर दी. आपका बहुत -बहुत अभिनंदन."

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 29, 2014 at 8:18pm

आ० जवाहर लाल जी,
रचना आपको पसंद आई, इसकी पंक्तियाँ भाईं . आपका बहुत- बहुत आभार.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 29, 2014 at 7:34pm

नर-नारीपूरक हैं,
नही समझ पाते लोग.
दोनो का सम- भाव हो
कब आएगा यह संजोग?

चिंतन जारी रहन चहिये  

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 29, 2014 at 6:35pm

आ० गिरिराज भाई,
आपकी सराहना मिली, मैं धन्य हुआ. अभिनंदन.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 29, 2014 at 11:15am

आदरनीय विजय भाई , सच कहा आपने इंसान यातो इस अति पर जीता है या उस अति पर , संतुलन मे कभी आ नही पाता । आपको इस चिंतन के लिये बधाई ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 27, 2014 at 11:46pm
आ o विजय प्रकाश जी ,
बहुत थोड़े में बहुत बड़ी बात कह दी आपने . अलगाते , उलझाते , खुद ही समझ नहीं पाते , जीवन जो बहुत सुन्दर , सुखद हो , उसे लड़ते झगड़ते बिताते, वे ही जाने , क्या पाते , क्या गवातें . बहुत सही और आकर्षक रचना . बधाई .
Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 27, 2014 at 1:07pm

आ० लक्ष्मण धामी जी. आपने सही कहा है- जबतक दोनो नही समझेंगे.
समझने का कIम तो चलते रहना चाहिए. आपका आभार.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 27, 2014 at 11:28am

आदरणीय भाई विजय प्रकाश जी आपने सत्य कहा है कि नर और नारी एक दूसरे के पूरक हैं । पर हकीकत तो यह है िकइस कटु सत्य को स्चयं नरनारी नहीं समझ पाये हैं । आपने एक प्रश्न उठाया है कि दानों का समभाव होने का संयोग कब आयेगा तो उस बारे यही कहा जा सकता है कि जब स्वयं नर नारी इसकी प्राथमिकता को समझते हुए आगे बढ़ेगे ।

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 27, 2014 at 8:36am

रचना की सराहना के लिए बहुत-बहुत आभार आ० कुंती जी.

Comment by coontee mukerji on June 26, 2014 at 10:07pm

बहुत सुंदर रचना....हार्दिक बधाई.

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