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बेमजा यार सफर रोज नई राहों का

2122     112 2     1122    22

**
खार  हूँ  एक  ये  सोचा   है  सभी  ने मुझको
फूल के साथ  जो  देखा  है  सभी  ने  मुझको

**

बंद सदियों  से  पड़ा  था  मैं  किसी  कोने में
खत तेरा जान के  खोला  है सभी ने मुझको

**
भोर सा रास  तुझे  आज   मगर  आया क्यूँ
तम भरी  रात जो बोला  है  सभी ने मुझको

**
दाद  वैसे  तो   मिली  बात  बुरी भी  कह दी
बस तेरी  बात  पे  कोसा  है सभी ने मुझको

**
रूह  की  बात  किसे   यार  लगी  सौदों  की
सिर्फ तन से ही तो तोला है सभी ने मुझको

**
बंद  आहट  से  मेरी  रोज  हुआ  जो  यारब
फिर उसी  द्वार पे भेजा  है सभी ने मुझको

**
हाल  मेरा   जो  हुआ   है  ये  फकीरों  जैसा
हर गली गाँव  में   रोका  है सभी ने मुझको

**
बेमजा   यार   सफर   रोज   नई  राहों का
हर नये  मोड़  पे  टोका है  सभी ने मुझको

**                 **              **          **
(रचना - 10 मार्च 2009)
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 909

Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2014 at 10:08am

आदरणीय भाई सौरभ जी , किसी भी रचना को आपकी स्नेह भरी प्रशंसा मिले इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है . इसके लिए हार्दिक आभार . शुभ शुभ ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 7, 2014 at 4:38am

एक व्यवस्थित हुई ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कुबूल करें भाईजी. शुभ-शुभ

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 5, 2014 at 11:19am

आदरणीया  अनुपमा जी, गजल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद स्वीकारें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 5, 2014 at 11:16am

आदरणीय बृजेश भाई जी, सर्वप्रथम गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद । आपकी नाराजगी जायज है और सलाह भी कि टिप्पणियों का जवाज निरंतर देना चाहिए । इससे निश्चित तौर पर संवाद बनने  के साथ साथ बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है । आपने अपनापन दिखाते हुए नाराजगी दिखाई, इस अपनेपन के अहसास से मन में खुशी हुई । मैं आप सहित सभी सुधीजनों से टिप्पणियों का प्रत्युत्तर समय पर न दे सकने के लिए क्षमा प्रार्थी हूं , कुछ निजी व्यस्तता और साथ ही इंटरनेट व्यवस्था की खराबी के कारण ऐसा हो गया । भविष्य मैं इस बात का ध्यान रखूंगा । आदरणीय शकील भाई की टिप्पणी का संज्ञान पहले ही ले लिया था । आपके द्वारा चिन्हित शेर में ‘ में ’ के बाद पे ’ टंकण की त्रुटि है । आपके स्नेह और मार्गदर्शन के लिए पुऩः हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 5, 2014 at 11:15am

आदरणीय भाई नरेंद्र सिह जी उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 5, 2014 at 11:14am

आदरणीय भाई अविनाश जी , उत्साहवर्धन एवं गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद स्वीकारें।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 5, 2014 at 11:14am

आदरणीय भाई आशुतोष जी, सिलसिलेवार हर शेर पर टिप्पणी से उत्साहवर्धन करने के लिए हार्दिक धन्यवाद । आपने सही कहा कि आदरणीय शकील भाई की बात सही है । आशा है भविष्य में भी इसी प्रकार समालोचना कर मार्गदर्शन करते रहेंगे । आपका स्नेह मिलता रहे यही कामना है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 5, 2014 at 11:14am

आदरणीय भाई जितेन्द्र जी , आपको गजल अच्छी लगी और सराहना की इसके लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 5, 2014 at 11:10am

आदरणीय भाई शिज्जू जी गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद, साथ ही सलाग के लिए भी । आप और शकील भाई की सलाह उचित है । इंटरनेट की खराबी के कारण प्रत्युत्तर में विलम्ब के लिए क्षमा प्रार्थी हूं ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 5, 2014 at 11:10am

आदरणीया बहन कुंती जी, गजल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद स्वीकारें ।

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