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 "  सच!  बहुत ही अच्छे इंसान थे  बल्लू भैया !!    क्षेत्रीय बैंक के अध्यक्ष पद पर  होते हुए उन्होंने सभी की बहुत मदद की , जो कोई भी पहचान वाला आकर अपनी समस्या बतलाता , उसे  कैसे न कैसे बैंक से आर्थिक मदद  दिलवा ही देते थे.  आज कई लोग तो उन्हीं की वजह से आबाद हुए बैठे है"

 

" हाँ भाई..!  उनकी माँ के  मर जाने के बाद आज उनका  अपना कोई भी तो नहीं.  देखा न !  पिछले वर्ष जब उनकी माँ की मृत्यु हुई थी तो बल्लू भैया के साथ-साथ सैकड़ों लोग सिर मुंडवाने को आगे आ गये और कहने लगे कि यह हम सबकी भी माँ थी,  लेकिन आज बल्लू भैया की मृत्यु पर ......."

 

   जितेन्द्र 'गीत'

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 9, 2014 at 10:29am

आपकी उत्साहवर्धक सराहना लेखनकर्म को मनोबल देती है आदरणीय अखिलेश जी, स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 9, 2014 at 10:13am

आपका हार्दिक आभार आदरणीय के.पी.सक्सेना जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 9, 2014 at 10:12am

आदरणीय प्रदीप जी, रचना पर आपकी उपस्थिति व् सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ, स्नेह और आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 9, 2014 at 10:09am

रचना के भाव पर आपका निशब्द होना, रचना की सार्थकता को प्रमाणित करता है. आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय शिज्जू जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 9, 2014 at 10:01am

आप सही कह रही हैं आदरणीया कुंती जी, जिनसे  स्वार्थ हो वो जिन्दा हो या पद पर रहें तब तक सारी ड्रामेबाजी चल सकती है . लेकिन जैसे ही वो गये " दि एंड" .  आपकी सराहना हेतु आपका आभारी हूँ , स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by Meena Pathak on May 8, 2014 at 7:18pm

बहुत सुन्दर ... आज का सच यही है .... बधाई | सस्नेह 

Comment by नादिर ख़ान on May 8, 2014 at 1:16pm

सही कहा आदरणीय जितेंद्र जी मनुष्य सामाजिक प्राणी से स्वार्थी प्राणी हो गया । सुंदर अभिव्यति ...कोमल हृदय से लिखी लघुकथा के लिए  बहुत बधाई आपको ...

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on May 8, 2014 at 12:44pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई, 

कौन पूछता है जाने के बाद , जब कोई पीढ़ी नहीं है साथ ।

हार्दिक बधाई 

Comment by kp saxena 'dusre' on May 8, 2014 at 12:14pm

 kya khoob kataakchh kiya hai !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 7, 2014 at 10:49pm

आप सही कह रही है आदरणीया सविता जी, आज के समय में केवल स्वार्थ स्वार्थ और स्वार्थ ही रह गया है. आपका हार्दिक आभार

सादर!

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