For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्त्री की दुनिया

स्त्री की ये दुनिया
बहुत सिमटी हुई
बहुत कोमल
ठीक जैसे आईना
जरा सी खरोंच काफी
उसके स्वरूप को
निमिष भर में वीभत्स करने
और
वो खरोंच धीरे-धीरे बढ़ी
तो
आईना चटक जाए
ये अनुभूत सत्य है ,
उस चटक को कई बार
महसूस किया
आईने के सौ -सौ टुकडो को
अश्रू युक्त सिसकियां सुनाते
उम्मीदों के नीड़ को
थरथरा धूलि धूसरित देख
रोम-रोम काँप उठा था
इसीलिए कहती हूँ
लौट जाओ आवारा बादल
किसी के आशियाने उजाड़ने का जुनून
कई गोरैयाओं को घायल कर देगा
तब आकंठ डूब जाओगे तुम
रक्त-वर्णिम अथाह नदी में
स्त्री की संवेगों की गठरी जो,
मचल-मचल जा रही
उसके मन की मूक वेदना को
दो पल सहलाने लगो
स्त्री की ये दुनिया
मर -मर कर जीती है
जाने कितनी बार मरती है
खुद को जिन्दा रखने के लिये

(मौलिक व अप्रकाशित रचना )

दीपिका द्विवेदी "दीप "

Views: 483

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 23, 2014 at 1:36am

संवेदना को यथोचित शब्द मिले हैं.. आपकी रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी. 

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 9, 2014 at 10:28pm

बहुत बढ़िया आदरणीया दीपिका जी भावपूर्ण अभिव्यक्ति हेतु बधाई !

Comment by Meena Pathak on May 8, 2014 at 7:42pm

बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना ... बधाई स्वीकारें 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 8, 2014 at 7:51am

bahut बहुत मर्मस्पर्शी रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीया दीपिका ज़ी

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 7, 2014 at 6:04am

स्त्री की ये दुनिया 
मर -मर कर जीती है 
जाने कितनी बार मरती है 
खुद को जिन्दा रखने के लिये

अत्यंत मार्मिक चित्रण आपका अभिनन्दन !

Comment by Savitri Rathore on May 6, 2014 at 5:36pm

एक नारी के मन की पीर को भावपूर्ण अभिव्यक्ति हेतु बधाई !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 4, 2014 at 9:10pm

संवेदनायें मुखरित हुई, भावपूर्ण रचना हेतु बधाई...............

Comment by Deepika Dwivedi on May 4, 2014 at 7:48pm

coontee mukerji जी आपका बहुत-बहुत आभार मेरे भाव आपके मन तक पहुँचें

Comment by coontee mukerji on May 4, 2014 at 12:10am

मन की आंतरिक पीड़ा से जुझती एक औरत केदिल से निकली आवाज़......बहुत मार्मिक रचना. आपको बधाई है. दीपिका जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
2 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service