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गंगा हमारी


भव ताप हारक, पाप नाशक, धरा उतरी गंग।

निर्मल प्रवाहित, प्रेम सरसित, करे मन जल चंग।।

सुंदर मनोरम, घाट उत्तम, देख कर मन दंग।

शिव हरि उपासक, साधु साधक, जपे सुर मुनि संग।१।

 

अति सलिल पावन, सार जीवन, बसे जिसमे प्रान। 

बल बुद्धि दायक, रोग हारक, सुधा इसको मान ।।

सब सुख प्रदायक, मोक्ष दायक, गुणों की यह खान।

फिर हो न दूषित, नीर कलुषित, रखें इतना ध्यान।२।  

 

ममता समेटे, दोष मेटे, करे तन - मन शुद्ध ।

सुरसरित ध्यायें, ज्ञान बांटें, बने मानस बुद्ध ।।

गंगा हमारी, माँ दुलारी, रहे मन अभिमान।   

गंगा बचाओ, मुक्ति पाओ, यही हो अभियान ।३।

 

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by kanta roy on October 8, 2015 at 8:35am

ममता समेटे, दोष मेटे, करे तन - मन शुद्ध ।
सुरसरित ध्यायें, ज्ञान बांटें, बने मानस बुद्ध ।।
गंगा हमारी, माँ दुलारी, रहे मन अभिमान।
गंगा बचाओ, मुक्ति पाओ, यही हो अभियान ----- बहुत सुन्दर ये गंगा का अभिमान है। इस सुन्दर चाँद के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय सत्यनारायण जी ।

Comment by Satyanarayan Singh on May 14, 2014 at 8:14pm

परम आ. सौरभ जी सादर, 

        काव्यसाधना के दृष्टी से ऐसे उन्नतशील विचारों/सुझावों  की  नितांत आवश्यकता होती है जो काव्य शिल्प को निखारने में उपयोगी हों अतएव आपके ऐसे हर सुझावों/विचारों का स्वागत है आदरणीय जो अन्यत्र दुर्लभ है.  भविष्य में भी मुझे सदैव आपके मार्गदर्शन की  प्रतीक्षा रहेगी आदरणीय सादर. धन्यवाद. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 14, 2014 at 4:58pm

सुंदर मनोरम, घाट उत्तम, भये लखि मन दंग - सुंदर मनोरम, घाट उत्तम, देख कर मन दंग
रचना की भाषा में एकरूपता बनी रहे तो यह अधिक संयत रचनाकर्म होगा.

गंगा हमारी, मात प्यारी, रहे मन अभिमान = गंगा हमारी, माँ दुलारी, रहे मन अभिमान
गंगा बचाओ, मुक्ति पाओ, यही हो अभियान = गंगा बचाओ, मुक्ति पाओ, हो यही अभियान

उपरोक्त व्यवस्था को पंक्तियों में सुधार न कह कर इसे मैं अपने विचार मात्र कह रहा हूँ.

कामरूप छन्द पर इस गहन अभ्यास के लिए हार्दिक बधाई और सादर शुभकामनाएँ, आदरणीय.
सादर

Comment by Satyanarayan Singh on May 12, 2014 at 9:27pm

रचना सराहने एवं बधाई हेतु आपका ह्रदय से आभार आदरणीया अन्नपूर्णा जी

Comment by Satyanarayan Singh on May 12, 2014 at 9:26pm

रचना सराहने एवं बधाई हेतु आपका ह्रदय से आभार आदरणीय अशोक रक्ताले जी

Comment by Satyanarayan Singh on May 12, 2014 at 9:26pm

रचना सराहने एवं बधाई हेतु आपका ह्रदय से आभार आदरणीया कुंती जी

Comment by Satyanarayan Singh on May 12, 2014 at 9:25pm

रचना सराहने एवं बधाई हेतु आपका ह्रदय से आभार आदरणीय सुरेन्द्र कुमार जी

Comment by Satyanarayan Singh on May 12, 2014 at 9:25pm

रचना सराहने एवं बधाई हेतु आपका ह्रदय से आभार आदरणीय डॉ आशुतोष जी

Comment by annapurna bajpai on May 2, 2014 at 11:42pm

वाह बहुत सुंदर काम रूप छंदो का सृजन किया है , आपको बहुत बधाई । 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 2, 2014 at 10:25pm

आदरणीय सत्यनारायण सिंह साहब सादर, पावन गंगा सरि पर रचे सुन्दर कामरूप छंदों पर सादर बधाई स्वीकारें.

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