For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छंद मदन/रूपमाला
(चार चरण: प्रति चरण २४ मात्रा,
१४, १० पर यति चरणान्त में पताका /गुरु-लघु)

मजदूर दिन

मजदूर दिन जग मनाता, शान से है आज।
कर्म के सच्चे पुजारी, तुम जगत सर ताज।।
प्रतिभागिता हर वर्ग की, देश आंके साथ।
राष्ट्र के उत्थान में है, हर श्रमिक का हाथ।१।

श्रम करो श्रम से न भागो, समझ गीता सार।
सोया हुआ भाग्य जागे, जानता संसार।।
श्रम स्वेद पावन गंग सम, बहे निर्मल धार।
श्रम दिलाता मान जीवन, श्रम प्रगति का द्वार।२।

अंबर खुला मजदूर का, होता इक वितान।
अवनी कठिन उसके लिए, सुमन सेज समान।।
त्यागता आराम जीवन, वह सृजन के हेतु।
धर्म ही है कर्म उसका. सफल जीवन सेतु।३।

-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 908

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Satyanarayan Singh on May 16, 2014 at 6:45pm

निम्नवत संशोधित पंक्तियाँ पुनश्च अवलोकनार्थ सविनय सादर

प्रतिभागिता हर वर्ग की, देश आंके साथ

राष्ट्र के उत्कर्ष में है, हर श्रमिक का हाथ।।

Comment by Satyanarayan Singh on May 16, 2014 at 11:59am

मार्गदर्शन हेतु सादर धन्यवाद आदरणीय 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 16, 2014 at 1:59am

उद्योजकों वैज्ञानिकों, औ किसानों साथ ..  इस पंक्ति में संज्ञाओं का बहुवचन रूप गलत ढंग से वर्णित हुआ है. 

इस वाक्य में ’किसानों’ और ’साथ’ के बीच ’का’ का होना बनता था.  कारक ’का’ न होने से उद्योजक, वैज्ञानिक और किसान का बहुवचन रूप भी यही रह जायेगा. न कि उद्योजकों, वैज्ञानिकों औ’ किसानों नहीं होगा. 

आदरणीय, मेरा निवेदन यही था.

सादर

Comment by Satyanarayan Singh on May 15, 2014 at 6:35pm

परम आ. सौरभजी सादर

   निम्न पंक्तियों में व्याकरण के लिहाज से किये गये संशोधन के बारे में कृपया अपने विचारों से अवगत कीजिएगा.

उद्योजकों वैज्ञानिकों, औ किसानों साथ।

राष्ट्र के उत्थान में है, हर श्रमिक का हाथ।।

   रचना को सराहने एवं उत्साहवर्धन तथा बधाई हेतु सादर आभार आदरणीय.... 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 15, 2014 at 1:18am

अंबर खुला मजदूर का, होता इक वितान।
अवनी कठिन उसके लिए, सुमन सेज समान।।
त्यागता आराम जीवन, वह सृजन के हेतु।
धर्म ही है कर्म उसका. सफल जीवन सेतु ....  . बहुत खूब  !

इस प्रस्तुति के लिए हृदय से बाइयँ, आदरणीय सत्यनारायणजी.

निम्नलिखित पंक्तियों को व्याकरण के अनुसार एक बार और देख लें आदरणीय.

उद्योगपति वैज्ञानिकों, औ किसानों साथ।
राष्ट्र के उत्थान में है, श्रमिक तेरा हाथ।

शुभ-शुभ

Comment by Satyanarayan Singh on May 12, 2014 at 9:15pm

रचना सराहने एवं बधाई हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ. आ. कल्पना  जी

Comment by Satyanarayan Singh on May 12, 2014 at 9:14pm

रचना सराहने एवं बधाई हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ. आ. बहन सरिता जी 

Comment by Satyanarayan Singh on May 12, 2014 at 9:13pm

रचना पर आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु आपका आभारी हूँ. आ. कुंती जी 

   

Comment by Satyanarayan Singh on May 12, 2014 at 9:11pm

रचना सराहने एवं बधाई हेतु आपका आभारी हूँ. आदरणीय सुरेन्द्र कुमार जी 

Comment by कल्पना रामानी on May 3, 2014 at 8:14pm

वाह,वाह, बहुत सुंदर!!  एक नए छंद में, अनुपम रचना पढ़कर आनंद आ गया। बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service