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इधर-उधर की न कर, बात दिल की कर साक़ी

सुहानी रात हुआ करती मुख़्तसर साक़ी ||

खिला-खिला है हर इक फूल दिल के सहरा में
तुम्हारे इश्क़ का कुछ यूँ हुआ असर साक़ी ||

अजीब दर्दे-मुहब्बत है ये शकर जैसा
जले-बुझे जो सितारों सा रातभर साक़ी ||

उतार फेंक हया शर्म के सभी गहने
कि रिस न जाए ये शब, हो न फिर सहर साक़ी ||

है बरकरार तेरा लम्स* मेरे होंठों पर
कि जैसे ओंस की इक बूँद फूल पर साक़ी ||

ख़ुदा से और न दरख़ास्त एक तेरे सिवा
तेरी निगाह में हो ज़िन्दगी बसर साक़ी ||

लम्स - स्पर्श

अरकान - १२१२ ११२२ १२१२ ११२/२२
(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Maheshwari Kaneri on May 5, 2014 at 6:40pm

बहुत सुंदर गजल आदरणीय आशीष जी।

Comment by कल्पना रामानी on May 3, 2014 at 8:29pm

बहुत सुंदर गजल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय आशीष जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 2, 2014 at 10:27pm

आदरणीय आशीष भाई , खूब सूरत गज़ल कही है , आपको दिली बधाइयाँ ॥

Comment by Vindu Babu on May 2, 2014 at 7:36pm

अच्छी गज़ल कही है आदरणीय आशीष जी।

हार्दिक बधाई आपको।

सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 2, 2014 at 2:27pm

है बरकरार तेरा लम्स* मेरे होंठों पर
कि जैसे ओंस की इक बूँद फूल पर साक़ी.............वाह! बेहद खुबसूरत, दिली बधाई आदरणीय आशीष जी

Comment by coontee mukerji on May 2, 2014 at 3:08am

उतार फेंक हया शर्म के सभी गहने
कि रिस न जाए ये शब, हो न फिर सहर साक़ी ||......लाजवाब.

Comment by umesh katara on May 1, 2014 at 5:13pm

है बेकरार तेरा लम्स मेरे होंठों पर
कि जैसे ओस की इक फूल पर साकी-------वाहहहहहहहहहह वाहहहहहहह

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 1, 2014 at 3:29pm

उतार फेंक हया शर्म के सभी गहने 
कि रिस न जाए ये शब, हो न फिर सहर साक़ी ||...

है बरकरार तेरा लम्स* मेरे होंठों पर
कि जैसे ओंस की इक बूँद फूल पर साक़ी ||..आशीष जी बढिया ग़ज़ल हुई है  हर शेर उम्दा पर ये दो मुझे बेहद भाये ..सादर 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on May 1, 2014 at 2:37pm

अच्छी गज़ल हुई है आशीष भाई , हार्दिक बधाई 

Comment by Meena Pathak on May 1, 2014 at 1:09pm

बहुत सुन्दर .. बधाई 

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