ढूंढने गया मैं खुद को
बाज़ार में
मैं न जाने कहाँ खो गया
चाँदी की खनक में
सोने की दमक में
मैं न जाने कहाँ खो गया
क्यों आया हूँ यहाँ
मैं क्या हूँ ?
मैं भूल गया
इस चमक-दमक की दुनियाँ में
मैं खुद को ही भूल गया
मैं भूल गया
मेरे हाथों में
कलम की ऐसी ताकत थी
ऊपर वाले की देन कहें
या हृदय की मेरी गागर थी
चलती थी
मेरी अश्रु स्याही से
भावो के मोती विखेरने को
समराग्नी की ताकत रखती थी
नव-निर्वाण की हुँकार भरने को
कहाँ गुम हुई
कहाँ खो गयी
मैं खुद को ही भूल गया
मेरे हाथों की वो सुनहरी कलम
मैं न जाने कहाँ खो गया |
Comment
Albela Khatri जी आपका बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद
shaandaar kavita ........
waah !
badhaai ho badhaai !
Yogi Saraswat जी आपका बहुत बहुत आभार
क्यों आया हूँ यहाँ
मैं क्या हूँ ?
मैं भूल गया
इस चमक-दमक की दुनियाँ में
मैं खुद को ही भूल गया
बहुत सुन्दर शब्द और बहुत खूब कहने का ढंग , अच्छा लगा
धन्यवाद PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHAजी, Laxman Prasad Ladiwalaजी, rajesh kumariजी, Rekha Joshi जी एवं अन्य सभी आदरणीय पाठकों का |
मनु जी ,
मैं भूल गया
मेरे हाथों में
कलम की ऐसी ताकत थी
ऊपर वाले की देन कहें
या हृदय की मेरी गागर थी सुंदर प्रस्तुति पर बधाई
सुन्दर प्रस्तुति सुन्दर मनोभाव
बहुत खूब भाई श्री जगदानंद झा मनुजी, आप जाने कहा खो गए,
अब बात बनी, बधाई,
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