For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्यहीन वाल्मिकी

मैं सबसे प्रेम करता था|

मेरे प्रेम को

एक मोबाइल कॉल की तरह अग्रेषित किया

मेरे अपनों ने ही

चमकते सिक्कों की ओर|

मेरे परिवार में मैं मूर्ख कहलाया |

मेरा लक्ष्य प्रेम था,

इसलिए मैं बन गया –

लक्ष्यहीन वाल्मिकी|

** मौलिक और अप्रकाशित

Views: 429

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 29, 2014 at 10:48am

धन्यवाद् आदरणीय डॉ. प्राची सिंह, जी कहानी चल रही है.... जाने क्यों लम्बी होती जा रही है|


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 28, 2014 at 5:39pm

इस कविता के सन्दर्भ में सार्थक टिप्पणियां हुई हैं 

आपकी कहानी का इंतज़ार रहेगा... 

शुभकामनाएं 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 20, 2014 at 11:27pm

आप सभी आदरणीयजनों ने जो शुभकामनाये दी हैं, आप सबका हृदय से कोटिशः धन्यवाद| रचना (कहानी) सम्पूर्ण होते ही आप के आशीर्वाद के लिए पोस्ट करूंगा| 

Comment by वेदिका on April 19, 2014 at 11:50pm
रचना का उद्देश्य ग्रहण करने में असमर्थ हुयी हूँ।
रचनाकर्म हेतु हार्दिक बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 18, 2014 at 5:38pm

सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई, आदरणीय !!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 18, 2014 at 11:21am

कथा शीघ्र पाठकों तक पहुंचे और प्रशंशा पाये इसी कामना के साथ हार्दिक बधाई , आदरणीय .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 18, 2014 at 9:06am

एक मार्मिक शुरुआत हुई आदरणीय चंद्रेश जी, आपकी पूर्ण कहानी हेतु बड़ी आतुरता है. शुभकामनायें स्वीकारें

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 18, 2014 at 3:04am

आदरणीय coontee जी, आपने सही पहचाना, यह रचना अधूरी ही है| 

एक कहानी लिख रहा हूँ... उसी का शीर्षक है - लक्ष्यहीन वाल्मिकी| उस कहानी का प्रारंभ इस रचना से करने की सोच है| इसका पूरा अर्थ तो कहानी में ही पता चलेगा, अभी लिखना चल ही रहा है|

महर्षि वाल्मिकी को अपने परिवार का त्याग करने के बाद एक लक्ष्य मिल गया था और उन्होंने वाल्मिकी रामायण की रचना कर दी, कहानी में भी ऐसा ही कुछ है... लक्ष्य को तरसता एक व्यक्ति है, जिसके परिवार में व्यक्ति से अधिक धन का महत्व है... वो परिवार का त्याग कर जीवन के लक्ष्य को ढूँढने निकला है.... 

 

आपकी शुभकामनाएं सिर-आँखों पर !!

Comment by coontee mukerji on April 18, 2014 at 1:20am

आपकी रचना में आपकी भावनाओं का स्पष्टिकरण नहीं हुआ है आदरणीय.....रचना अधुरी सी लग रही है.....शुभकामनाएँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
21 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service