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(कामरूप छंद) नकल न करें-अकल लगायें -अखिलेशकृष्ण श्रीवास्तव

(1)

अंग्रेजियत का, दंभ भरते, क्या दिये संस्कार।

रावण बनें कुछ, कंस भी हैं, पूतना भरमार ॥

नारी सुरक्षा, देश रक्षा, विफल है सरकार।

हैं बलात्कारी, आततायी,  व्याप्त भ्रष्टाचार ॥

              

(2)

नेता लफंगे, संग चमचे, जब पधारे गाँव।

वो गिड़गिड़ायें, वोट माँगें, पकड़ सब के पाँव॥

जीते अगर तो, भूल से भी, दिखें न बदमाश।

मंत्री बने तो, देश का फिर, करें सत्यानाश॥

*संशोधित 

########################

(मौलिक व अप्रकाशित)

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव     

धमतरी (छत्तीसगढ़),  

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Comment by coontee mukerji on April 6, 2014 at 12:45pm

नेता लफंगे, संग चमचे, आय हमरे गाँव।

वो गिड़गिड़ायें, वोट माँगें, पकड़ सब के पाँव॥

जीते कहीं तो, भूल से भी, दिखें न बदमाश।

मंत्री बने तो, देश का फिर, करें सत्यानाश॥.....क्या करें....जाएँ तो जाएँ कहाँ.....बात ये हुई कि खरबूजा पर छूरी चले या छूरी गिरे खरबूजे पर....सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 6, 2014 at 11:29am

आदरणीय अखिलेश जी ,

मेरे कहे को आपने उत्साहपूर्वक मान दिया मैं आपके प्रति आभारी हूँ...

बिलकुल सही 'यदि' की जगह अगर ही होना चाहिए..

सादर.

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 6, 2014 at 9:52am

आदरणीय श्याम भाई

रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद , आभार 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 6, 2014 at 9:49am

आदरणीया प्राचीजी,

प्रथम प्रयास की प्रशंसा आपने हृदय से की और वह भी  विस्तृत टिप्पणी के साथ इसके  लिए हार्दिक धन्यवाद ।

आपके सुझाव उचित हैं तदनुसार संशोधन हेतु अनुरोध किया है , कृपया आप भी देख लीजिए।

यदि लिखने से एक मात्रा कम हो जाएगी उसकी जगह"अगर" ठीक रहेगा ।

....... सादर  

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 6, 2014 at 9:37am

आदरणीय एडमिन महोदय,

कामरूप छंद में निम्न संशोधन की कृपा करें

दंभ करते        को.......  दंभ भरते

और भ्रष्टाचार     को....... व्याप्त भ्रष्टाचार

आय हमरे गाँव   को......  जब पधारे गाँव

जीते कहीं तो     को.....  जीते अगर तो

करने की कृपा करें.... धन्यवाद          


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 5, 2014 at 10:19pm

कामरूप छंद पर बहुत ही सार्थक सफल प्रयास हुआ है आदरणीय अखिलेश जी 

अंग्रेजियत का, दंभ करते, क्या दिये संस्कार।..............दंभ करते को दंभ भरते करना चाहिए न!

रावण बनें कुछ, कंस भी हैं, पूतना भरमार ॥

नारी सुरक्षा, देश रक्षा, विफल है सरकार।

हैं बलात्कारी, आततायी,  और भ्रष्टाचार ॥.............यहाँ 'और भ्रष्टाचार' कुछ अटपटा सा लगरहा है क्योंकि पहले दोनों शब्द विशेषणों की तरह प्रयुक्त हुए हैं और यह उसी लय में संज्ञा है....यदि और भ्रष्टाचार को 'व्याप्त भ्रष्टाचार' करें तो संज्ञा को आधार मिल रहा है....शायद सहमत हों !

नेता लफंगे, संग चमचे, आय हमरे गाँव।.....................'आय हमरे' इस आरोपित आंचलिकता की क्या विवशता थी आदरणीय? ..इसे ऐसे कीजिये तो ....... जब पधारें गाँव 

वो गिड़गिड़ायें, वोट माँगें, पकड़ सब के पाँव॥

जीते कहीं तो, भूल से भी, दिखें न बदमाश।...............जीतें कहीं तो , में कथ्य अस्पष्ट लग रहा है....जीतें यदि तो करें तो कैसा रहे?

मंत्री बने तो, देश का फिर, करें सत्यानाश॥

सामयिक कथ्य को छंदबद्ध करता बहुत ही सार्थक प्रयास हुआ है आदरणीय जिस पर मन मुग्ध भी है और आश्वस्त भी..

बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय 

Comment by Shyam Narain Verma on April 5, 2014 at 4:19pm
सुंदर भाव लिए, उत्तम रचना के लिए बधाई ....

कृपया ध्यान दे...

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