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ग़ज़ल – फूल की ख़ुशबू को हम यूं भी लुटा देते हैं

ग़ज़ल


फाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फैलुन 
२१२२   ११२२    ११२२   २२ 

फूल की ख़ुशबू को हम यूं भी लुटा देते हैं |
करते हैं इश्क़ ज़माने को बता देते है |

एक चिंगारी है सीने में हवा देते हैं |
हम ग़ज़ल कहते हुए ख़ुद को सज़ा देते हैं |

जिसकी शाखों पे घरौंदों में मुहब्बत ज़िंदा ,
ऐसे पेड़ों को परिंदे भी दुआ देते हैं |

इश्क़ लहरों से अगर है तो क़िला गढ़ना क्या ,
रेत के घर को बनाते हैं मिटा देते हैं |

हम भी शेरों में बयाँ करते हैं अफ़साने को ,
और अफ़साने को तारीख़ी बना देते हैं |

हो यकीं ख़ुद पे तो सैलाबों को रुकना होगा ,
हौसले वालों को रस्ता भी ख़ुदा देते हैं |

* मौलिक एवं अप्रकाशित

- अभिनव अरुण

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Comment

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Comment by Neeraj Neer on March 23, 2014 at 5:22pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 23, 2014 at 4:14pm

इश्क़ लहरों से अगर है तो क़िला गढ़ना क्या ,
रेत के घर को बनाते हैं मिटा देते हैं | 

हो यकीं ख़ुद पे तो सैलाबों को रुकना होगा ,
हौसले वालों को रस्ता भी ख़ुदा देते हैं |  

वाह, बहुत खूब |
अच्छी ग़ज़ल आदरणीय अभिनव जी |

Comment by Ajay Agyat on March 23, 2014 at 3:15pm

बहुत खूब 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 23, 2014 at 2:51pm

अच्छे अश'आर हुए हैं अभिनव जी, दाद कुबूल करें 

Comment by Abhinav Arun on March 23, 2014 at 10:56am
बहुत शुक्रिया और आभार आदरणीय गुमनाम जी , आदरणीया राजेश जी , वंदना जी ,!!
Comment by vandana on March 23, 2014 at 7:05am


जिसकी शाखों पे घरौंदों में मुहब्बत ज़िंदा ,
ऐसे पेड़ों को परिंदे भी दुआ देते हैं |

इश्क़ लहरों से अगर है तो क़िला गढ़ना क्या ,
रेत के घर को बनाते हैं मिटा देते हैं |

कमाल कमाल कमाल की शायरी है आदरणीय 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 22, 2014 at 9:38pm

आश्चर्य !!!जिस बहर पे मैंने अपनी ग़ज़ल अभी पोस्ट की उसी बहर पर आपकी ग़ज़ल देख रही हूँ :-)))))

जिसकी शाखों पे घरौंदों में मुहब्बत ज़िंदा ,
ऐसे पेड़ों को परिंदे भी दुआ देते हैं |----क्या कहने बहुत सुन्दर 

सभी शेर एक से एक बढ़ कर ...तहे दिल से दाद कबूलें अभिनव जी. 

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 22, 2014 at 8:40pm

wah wah sir badhai khoob gazal kahi hai

Comment by Abhinav Arun on March 22, 2014 at 6:30pm
हार्दिक आभार आदरणीय श्री गिरिराज भंडारी जी !

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 22, 2014 at 6:12pm

आ. अरुण अभिनव भाई , एक और खूब सूरत ग़ज़ल के किये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

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