For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िंदा हूँ मगर जीने का एहसास नही है

इक उसके चले जाने से कुछ पास नही है
ज़िंदा हूँ मगर जीने का एहसास नही है


वो दूर गया जब से ये बेजान है महफिल

साग़र है सुराही हैं मगर प्यास नही है


सुनने को तिरे पास भी जब वक़्त नही तो

कहने को मिरे पास भी कुछ ख़ास नहीं है

 

इस रूह के आगोश में है तेरी मुहब्बत
माना के तिरा प्यार मिरे पास नही है

रावण तो ज़माने में अभी ज़िंदा रहेगा
क़िस्मत में अभी राम के बनवास नही है

फिर कैसे यक़ी तुझपे करेगा ये ज़माना,
ख़ुद तुझको ही जब अपने पे विश्वास नही है

लेकर तो चला आया समंदर में मैं कश्ती
हिम्मत के सिवा कुछ भी मिरे पास नही है

ये राहे वफ़ा का है सफ़र सोच समझ ले
बस काई पे चलना है यहाँ घास नहीं है 

रिश्ते जो उगे झूठ की मिट्टी में है ‘सूरज’
फूलेंगे फलेंगे ये मुझे आस नही है

डॉ सूर्या बाली ‘सूरज’

Views: 1137

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on March 23, 2014 at 9:43am

वाह! बहुत खूब! शानदार ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by annapurna bajpai on March 23, 2014 at 12:19am

बहुत खूब !! आ0 सूर्या बाली जी , बहुत बधाई आपको । 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 22, 2014 at 8:40am

ये राहे वफ़ा का है सफ़र सोच समझ ले

बस काई पे चलना है यहाँ घास नहीं है ............वाह! लाजवाब, कमाल का शेर

बहुत शानदार गजल आदरणीय डा.सूर्या जी, दिली दाद कुबूल कीजिये

 

Comment by Neeraj Neer on March 21, 2014 at 6:52pm

अब उसके सिवा कोई भी शै ख़ास नही है

ज़िंदा हूँ मगर जीने का एहसास नही है .. आहा दिल खुश हो गया पढ़कर, बहुत बढियां .. 

Comment by नादिर ख़ान on March 20, 2014 at 10:26pm

अदरणीय सूरज जी मतले से लेकर, मकते तक के सारे अशआर  लाजवाब है । बहुत करीने से एक एक अल्फ़ाज़ बिठाये है आपने बहुत बधाई  आपको ...... 

Comment by Kundan Kumar Singh on March 20, 2014 at 9:49pm

ये राहे वफ़ा का है सफ़र सोच समझ ले

बस काई पे चलना है यहाँ घास नहीं है  

बहुत ही सुंदर । गजल के मिसरो ने मन मोह लिया।

Comment by ram shiromani pathak on March 20, 2014 at 9:35pm

बहुत सुन्दर गजल आदरणीय ..........

ये राहे वफ़ा का है सफ़र सोच समझ ले

बस काई पे चलना है यहाँ घास नहीं है ///////

इक उसके न होने से ही बेजान है महफिल

साग़र है सुराही हैं मगर प्यास नही है//////इन दोनों अशआरों के विशेष बधाई आपको। ……  सादर 

 

Comment by shashi purwar on March 20, 2014 at 7:42pm

वाह बहुत सुन्दर गजल। ....... आदरणीय बाला जी हार्दिक बधाई

इक उसके न होने से ही बेजान है महफिल

साग़र है सुराही हैं मगर प्यास नही है

 ……। वाह 

Comment by बसंत नेमा on March 20, 2014 at 12:23pm

आ0 सूरज जी बहुत दिनो बाद आप की गजल पढने को मिली ... बहुत खूबसूरत गजल के लिये  आप को बधाई .....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 19, 2014 at 5:51pm

आ. सूर्या बाली जी , खूबसूरत ग़ज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service