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पानी में आग--ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

------पानी में आग -----------

पानी में आग वे लगाने लगे है .

भूखे थे पर वे चहचहाने लगे है .

फूलों की मानिंद प्यार करते थे

काँटों से दोस्ती वे निभाने लगे है .

जो स्वयं पास न कर सके परीक्षा

ऐसे शिक्षक आज पढ़ाने लगे है .

पुलिस ने चोरो से की दोस्ती

गश्त में वे अपनी सुसताने लगे .

देशसेवा का जज्बा लिए थे जो

वे अपने देश को ही खाने लगे है .

------------------------------------

ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश "

-- मौलिक व अप्रकाशित "

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Comment by Omprakash Kshatriya on March 26, 2014 at 8:30pm
शशि पूर्वर जी आप को रचना अच्छी लगी मेरी मेहनत सफल हो गई
Comment by Omprakash Kshatriya on March 26, 2014 at 8:25pm

जीतेन्द्र जी आप को मेरी रचना अच्छी लगी , मेरे लिए यह शकुन की बात है , आभार

Comment by shashi purwar on March 22, 2014 at 10:00pm

वाह बहुत खूब सुन्दर रचना आदरणीय ओम प्रकाश जी , हार्दिक बधाई

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 22, 2014 at 8:29am

बहुत खुबसूरत रचना आदरणीय ओमप्रकाश जी, आपको हार्दिक बधाई

Comment by Omprakash Kshatriya on March 22, 2014 at 7:15am

सरिता जी आप की सराहना के लिए आभार . आप को मेरी रचना अच्छी लगी .  इस के लिए शुक्रिया .

Comment by Sarita Bhatia on March 21, 2014 at 8:47pm

बहुत खुबसूरत रचना के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Omprakash Kshatriya on March 21, 2014 at 7:31am

laxman जी आप का बहुत बहुत आभार . आप की सलाह सरआँखों पर . इस पर अमल करूँगा .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 20, 2014 at 7:02am

भाई ओमप्रकाश जी , प्रयास के लिए हार्दिक बधाई ,भाई गणेश जी की सलाह पर अवश्य विचार करें .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 19, 2014 at 5:51pm

स्वागत है आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी ।

Comment by Omprakash Kshatriya on March 19, 2014 at 5:45pm

गणेश जी आप के मार्गदर्शन का आभार . आप ने बहुत अच्छा सुझाव दिया है . 

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