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सार ललित छंद (कल्पना रामानी)

छन्न पकैया, छन्न पकैया, दिन कैसे ये आए,

देख आधुनिक कविताई को, छंद,गीत मुरझाए।

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, गर्दिश में हैं तारे,

रचना में कुछ भाव हो न हो, वाह, वाह के नारे।    

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, घटी काव्य की कीमत,

विद्वानों को वोट न मिलते, मूढ़ों को है बहुमत।

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, भ्रमित हुआ मन लखकर,

सुंदरतम की छाप लगी है, हर कविता संग्रह पर।

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, कविता किसे पढ़ाएँ,

पाठक भी अब यही सोचते, कुछ लिख, कवि कहलाएँ।

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, रचें किसलिए कविता,

रचना चाहे ‘खास’ न छपती, छपते ‘खास’ रचयिता।

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, अब जो ‘तुलसी’ होते,

देख तपस्या भंग छंद की, सौ-सौ आँसू रोते।

मौलिक व अप्रकाशित  

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 13, 2014 at 9:21am

सुंदर सार छंद (छन्न पकैया) रचना के लिए बधाई आदरणीया कल्पना जी -

छन्न पकैया, छन्न पकैया, अब जो ‘तुलसी’ होते,

देख तपस्या भंग छंद की, सौ-सौ आँसू रोते। --------बहुत खूब 

Comment by Omprakash Kshatriya on March 13, 2014 at 7:21am

वैसे यह सच्चाई है कि  जिस की पहुँच होती है या जिस के पास पैसा होता है वह किसी भी तरह अपनी पुस्तक छपवा कर ख्याति प्राप्त करने की कोशिश करता है . सही रचयिता गुमनामी की जिन्दगी में मर जाता है .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 13, 2014 at 12:06am

सार छंद के विधान में निम्नलिखित तथ्य ध्यातव्य हैं -

पदों के दोनों चरणान्त गुरु-गुरु (ऽऽ, २२) या गुरु-लघु-लघु (ऽ।।, २११) या लघु-लघु-गुरु (।।ऽ, ११२) या लघु-लघु-लघु-लघु (।।।।, ११११) से होते हैं.

किन्तु गेयता के हिसाब से गुरु-गुरु से हुआ चरणान्त अत्युत्तम माना जाता है लेकिन ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं हुआ करती.

अलबत्ता यह अवश्य है, कि पदों के किसी चरणान्त में तगण (ऽऽ।, २२१), रगण (ऽ।ऽ, २१२), जगण (।ऽ।, १२१) का निर्माण न हो.

तथा, आपने सार छंद आधारित काव्यरचना अवश्य की है, आदरणीया कल्पनाजी, किन्तु, इसे छन्न पकैया का नाम दिया गया है. कारण कि प्रत्येक बंद का प्रथम विषम चरण छन्न पकैया छन्न पकैया के रूप में होता है. अन्यथा, सार छंद में ऐसी कोई बाध्यता नहीं होती कि उसके प्रत्येक बंद का पहला विषम चरण किसी वाक्य या वाक्यांश की आवृति का आग्रही हो.

आपकी इस प्रस्तुति के कई बंद तार्किक रूप से अनुमन्य हैं. इस हेतु हृदय से बधाई, आदरणीया.

यह सत्य है, कि छंद और गीतों का मर्सिया पढ़ने वाले और इनके ’मर जाने’ की घोषणा कर देने वाले आज गेय कविताओं और इसके विभिन्न प्रारूपों (जैसे ग़ज़ल आदि) की लोकप्रियता से और काव्य-साहित्य में छंदों के वापस व्याप जाने से चकित हैं. उन्हें बलात मुँह छिपाना पड़ रहा है.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 12, 2014 at 9:56pm

आदरनीया , बहुत सुन्दर विषय पर सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई ॥

Comment by विजय मिश्र on March 12, 2014 at 5:02pm
बहुत सधी हुई सुंदर बात मन्तव्य रूप में आपने इन दोहों के माध्यम से रखी ,कल्पना दीदी, साधुवाद |
बर्नाडसा या हेमिंग्वे ने एक नए रचनाकार के दुराग्रह पर उसकी रचनाएँ देखी और सारी पांडुलिपियां फाड़कर फेंक दियी और हिदायत दिया -"अभी फाड़ कर फेंकने के लिए लिखो|"

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 12, 2014 at 11:13am

बहुत सुन्दर सार्थक कटाक्ष करते छन्न पकैया वाह्ह ...बहुत बहुत बधाई आपको आ० कल्पना रमानी जी.  

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 12, 2014 at 10:43am

छन्न पकैया छन्न पकैया, रमे राम जन जन में |

कविताई शारद भरती हैं, कवि के सुंदर मन में ||

छन्न पकैया छन्न पकैया, कविताओं की थाती |

भावहीन को कैसे भाये, रसिकों को हर्षाती ||

छन्न पकैया छन्न पकैया, साम्यवाद पापी है |
जब से यह कविता में आया, कविताई काँपी है ||

आदरणीया कल्पना जी को कोटिशः बधाई

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 11, 2014 at 7:31pm

आदरणीया कल्पनाजी,

आधुनिक कविता, अकविता, नई कविता पर सुंदर व्यंग्य, हार्दिक बधाई।

Comment by shashi purwar on March 11, 2014 at 3:16pm

बहुत सुन्दर ललित छंद -- सभी जोरदार हार्दिक बधाई आ. कल्पना जी

Comment by kalpna mishra bajpai on March 11, 2014 at 3:07pm

कल्पना दी आप ने सार गर्वित बात कही है बहुत बधाई आप को । सादर !!!!!!!!!

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