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कुछ कम रोशन है रोशनी तुम बिन

बरसात कम है गीली तुम बिन

हवाओं में खुश्बू नहीं है तुम बिन

चाँद की कम है चाँदनी तुम बिन

सूरज करे ना उजाला तुम बिन

घर बन गया मकान है तुम बिन

भंवरे नही हैं गुनगुनाते तुम बिन

थम सा गया है वक्त तुम बिन

 

पर मेरी हर ख्वाहिश है तुम से

पर अब भी हर सांस में बसे हो तुम

हर धड़कन में आवाज़ है तुम्हारी

हर पल जैसे छू जाते हो दिल को

हर आहट में अहसास है तुम्हारा

 

पीछे से आकर 

आँखें बंद करते हो

और पूछते हो ,

कौन हूँ मैं?

तुम वोही हो, 

जिसके होने से

चाँद की चाँदनी,

हवाओं की खुश्बू

सूरज का उजाला,

भंवरों का गुंजन,

घर का अहसास 

और 

सबसे ऊपर

जिसके होने से 

मैं हूँ, ,पगले !

...............................

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Sarita Bhatia on March 3, 2014 at 4:12pm

भाई जितेन्द्र जी शुक्रिया ...सादर

Comment by Sarita Bhatia on March 3, 2014 at 4:11pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on March 3, 2014 at 4:11pm

आदरणीय ब्रिजेश जी शुक्रिया 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2014 at 1:37am

बहुत मर्मस्पर्शी रचना आदरणीया सरिता जी, हार्दिक बधाई आपको

Comment by annapurna bajpai on March 1, 2014 at 1:12pm

मर्म स्पर्शी रचना , बहुत बधाई आपको । 

Comment by बृजेश नीरज on February 28, 2014 at 10:50pm

अच्छी रचना! आपको हार्दिक बधाई!

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