For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहे-१३(प्रेम पियूष)

उनके आते ही यहाँ,खिले ह्रदय में फूल!

कोयल भी गानें लगी,पवन हुआ अनुकूल!!

मंद मंद चलने लगी,देखो प्रेम बयार!
कानों में आ कह रही,कर लो थोड़ा प्यार!!


अधरों के पट खोलकर,की है ऐसी बात !! 

शब्द शब्द में बासुँरी,फिर मधुमय बरसात!!


कह न सका जब मैं उन्हें,तुम हो मन के मीत!

शायद तब से कवि बना,लिख लिख गाता गीत!!


फिर से मै घायल हुआ,पता नहीं वह कौन!

मुझे व्यथित करके सदा,हो जाती है मौन!!


बजा बाँसुरी प्रेम की,डालो मुझमे प्राण!

पुनः मुझे जीवित करो,कब से हूँ म्रियमाण!!

***********************************************

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 763

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on February 11, 2014 at 8:48pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण जी .........   सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 11, 2014 at 7:04pm

अन्तरंग दोहे रचने हेतु बधाई 

Comment by ram shiromani pathak on February 11, 2014 at 10:16am


क्या दोहे लिखे है आपने आहा। ..

मधुशाला से भी अधिक, अधरों में उन्माद
हद से ज्यादा है नशा, हद से ज्यादा स्वाद ////वाह वाह


आपकी समीक्षात्मक टिपण्णी व् अनुमोदन पाकर बहुत प्रसन्नता हुई, बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई अरुण शर्मा जी //// सादर

Comment by ram shiromani pathak on February 11, 2014 at 10:09am

बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई रमेश जी। 

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 10, 2014 at 9:44pm

सुंदर दोहावली पर कोटिश बधाई

कह न सका जब मैं उन्हें,तुम हो मन के मीत!

शायद तब से कवि बना,लिख लिख गाता गीत!!---------------------------- शायद ?  अच्छा प्रयोग

Comment by अरुन 'अनन्त' on February 10, 2014 at 5:01pm

उनके आते ही यहाँ,खिले ह्रदय में फूल!

कोयल भी गानें लगी,पवन हुआ अनुकूल!!

उनका दर्शन हो हुआ, दर्द गया सब भूल  

पढ़ ली भाषा प्रेम की, मैं गए बिना स्कूल

मंद मंद चलने लगी,देखो प्रेम बयार!
कानों में आ कह रही,कर लो थोड़ा प्यार!!

सोच समझ कर कीजिए, प्रेम बड़ा बहुमूल

मिलते हैं यदि फूल तो, चुभते भी हैं शूल


अधरों के पट खोलकर,की है ऐसी बात !! 

शब्द शब्द में बासुँरी,फिर मधुमय बरसात!!

मधुशाला से भी अधिक, अधरों में उन्माद

हद से ज्यादा है नशा, हद से ज्यादा स्वाद  


कह न सका जब मैं उन्हें,तुम हो मन के मीत!

शायद तब से कवि बना,लिख लिख गाता गीत!!

मुख से जब ना कह सका, प्रिये नहीं तुम आम

तबसे ही मैं कवि बना, हाँथ लेखनी थाम


फिर से मै घायल हुआ,पता नहीं वह कौन!

मुझे व्यथित करके सदा,हो जाती है मौन!!

होगी कोई निर्दयी, या होगी पाषाण

बचकर रहना मित्रवर, छीन न ले वो प्राण


बजा बाँसुरी प्रेम की, डालो मुझमे प्राण!

पुनः मुझे जीवित करो, कब से हूँ म्रियमाण!!

बजा बाँसुरी प्रेम की, दिल जायेगी लूट

स्वप्न सलोना हे अनुज, कहीं न जाये टूट

राम भाई सभी दोहे बहुत ही सुन्दर रचे हैं आपने मेरी ओर से ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें.

कह न सका जब मैं उन्हें,तुम हो मन के मीत!  .. इस दोहे के प्रथम में प्रवाह की कमी है देख लीजियेगा.

शायद तब से कवि बना,लिख लिख गाता गीत!!

Comment by ram shiromani pathak on February 10, 2014 at 4:58pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय अखिलेश भाई। ……… सादर

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on February 10, 2014 at 4:39pm

कह न सका जब मैं उन्हें,तुम हो मन के मीत!

शायद तब से कवि बना,लिख लिख गाता गीत!!

बहुत सुंदर राम भाई हार्दिक बधाई सभी दोहों के लिए । 

Comment by ram shiromani pathak on February 10, 2014 at 4:25pm

अमूल्य सुझाव के लिए हार्दिक आभार आदरणीया कुन्ती दीदी जी.....  सादर 

Comment by coontee mukerji on February 10, 2014 at 3:35pm

प्यारे अनुज उमर के हिसाब से दोहे ठीक है......जीवन सागर में तैरने के लिये डुबकी लगाना अति आवश्यक है अन्यथा कटहल पेड़ ही  पर पक जाऐंगे.....अनेक शुभकामनाएँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service