कोई कैसे सुने दास्ताँ मेरी
खुद को भूल जाते सुनते-सुनते.
वो भी साथ होते मेरे लेकिन
पांव थक जाते हैं चलते-चलते.
याद आती मुझे जब कभी उसकी
आँसू बहाते हैं चुपके-चुपके.
दिल बहुत चाहता आज हँसने को
आँख भर आती है हँसते-हँसते.
मर गये होते चाहत में उसके
मौत आती है पर मरते-मरते.
(मौलिक व अप्रकाशित )
अनिल कुमार 'अलीन'
Comment
आदरणीया!
............................आपका हार्दिक आभार!
सीखने की चाहत या जुनून है तो सीख जायेंगे यूँ ही लिखते लिखते ....बहुत सुन्दर प्रयास है कोशिश कीजिये विश्वास है इसी ग़ज़ल को एक दिन आप बेहतरीन बना कर पेश करेंगे शुभकामनायें हाँ इस प्रयास पर मेरी बधाई आपको
आप सभी आदरणीय जनों का हार्दिक आभार!
आदरणीय आशुतोष जी यह मुझ द्वारा कोई प्रयास था ही नहीं और न ही मैं लिखा हूँ...............बस यह लिख गया है..............इस सिलसिले में जल्द ही प्रयास करने की कोशिश करूँगा............आपका सुझाव बहुमूल्य है और इस पर अमल शुरू कर दिया हूँ............आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय बृजेश जी,
ग़ज़ल लिखने का बहुत सुख है किन्तु अभी तक लिखा नहीं बल्कि जो कुछ है यह बस लिख गया है.............जल्द ही ग़ज़ल विधा को सीखकर आपकी सेवा में एक ग़ज़ल प्रेषित करूँगा............फिर आपकी बधाई भी स्वीकार करूँगा..............आशा करता हूँ आपका मार्गदर्शन और आशीर्वाद सदैव मिलता रहेगा ......... हार्दिक आभार!
आदरणीय लक्ष्मण जी सही फरमाया आपने...............बदलाव कर दिया हूँ किन्तु प्रदशित नहीं हो रहा ..............आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय आपके इस प्रयास पर आपको तहे दिल बधाई /// मैं अभी खुद सीख रहा हूँ इसलिए बिशेस जानकारी तो नहीं है पर अभी आपकी यह रचना ग़ज़ल के दर्जे में नहीं आती है ..ग़ज़ल केकुछ नियम है ..आदरणीय वीनस जी ने ग़ज़ल की बातें एवं आदरणीय तिलक जी ने ग़ज़ल की कक्षा के माध्यम से बहुत कुछ सिखाने का प्रयास किया हिया //आप उक्त दोनों से जुड़े और तमाम जानकारी प्रपत्र करें ..हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ..सादर
अच्छी ग़ज़ल है! इस प्रयास के लिए आपको हार्दिक बधाई!
कहन पर काम करने की जरूरत है!
आदरणीय भाई अनिल जी गजल के भाव अच्छे हैं . अगर
आँसू बहाते हैं कि बजाय 'अश्क बह जाते हैं'
करते तो मेरे हिसाब से जड़ा बेहतर लगता .वैसे प्रबुद्ध जनों कि प्रतिक्रिया का इंतजार करें .हार्दिक बधाई
मर गये होते चाहत में उसके
मौत आती है पर मरते-मरते..........बहुत खूब.
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