जमाना बेताब है मुश्किलें पैदा करने को,
मेरी अनकही बातों पर ऐतबार न कर.
बढ़ते रहे दरमियाँ दिलों के बीच,
चाहत ये जमाने की कामयाब न कर.
एक लकीर है हमारे और उसके बीच,
डर है गुम होने का, उसे पार न कर.
कल का सूरज किसने देखा है,
आ भर ले बाहों में इन्कार न कर.
यक़ीनन ढला ज़िस्म फौलाद के सांचें में,
पर दिल है शीशे का, तू वार न कर.
शक अपनों पर, परायों के खातिर,
यकीं नहीं है तो फिर प्यार न कर.
........मौलिक व अप्रकाशित..........
Comment
नीरज जी...................हम भले ही इस भ्रम में रहे कि हम करता है. परन्तु हम करता नहीं है ..............यह सहज तरीके से अनुभव किया जा सकता है...........इसमे कृष्ण को कहने और न कहने का सवाल ही नहीं उठता ...............आप मेरे लिए जितना सच है उतना ही कृष्ण मेरे लिए झूठ...............
आदरणीय सौरभ जी......................बिलकुल..............आप सभी का बेशकीमती समय मिला हार्दिक आभार!..............
वाह वाह वाह अनिल भाई क्या बात कह दी
लिखते नहीं हैं लिख जाता है
यही तो मै भी कहना चाहता हूँ जिस तरह जीवन प्रभु का प्रसाद है हमारा प्रयास नही
उसी तरह कविता भी प्रभु का प्रसाद ही है हमारा प्रयास नही
लाइन में लग जाते हैं मिल जाता है , ये तो परम धन्यभाग है जैसे गीता में कृष्ण कहते हैं
कर्ता न बनो बल्कि हो जाओ शायद यही विकर्म है यही स्वधर्म ।
आदरणीया!
........शुक्रिया
आदरणीय नीरज जी ..................आपको अच्छा लगा हो यह अलग बात है पर मेरे लिए यह अच्छा नहीं क्योंकि इससे बेहतर हो सकता था और वो कला इस मंच से अपने अन्दर उतारनी है......
आदरणीय गिरिराज जी.......................शुक्रिया ...........प्रयास किया ही नहीं मैं बस युहीं लिख गया...............
आदरणीय अरुण जी.................................हार्दिक आभार........................जी अभी मुझे किसी भी रचना के बारे में कोई जानकारी नहीं है ....................मैं लिखता नहीं बल्कि लिख जाता है.............यह दिपदीय है यह भी मुझे यहाँ आकर मालूम हुआ......जो मेरे लिए अच्छी बात है. उम्मीद करता हूँ आगे भी बहुत कुछ आप लोगों से सिखने को मिलेगा.......
बहुत खूब भाईजी..
भाई अरुनजी के कहे पर अवश्य ध्यान दीजियेगा. आपकी संभावनाओं को अर्थ मिल जायेंगे.
शुभ-शुभ
आ0 अनिल जी सुंदर द्विपदीय आपको बहुत बधाई ।
भाई अनिल जी नमस्कार बहुत अच्छा लिखा है ।
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