For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

परिचित अपरिचय ... (विजय निकोर)

परिचित अपरिचय

 

गीले भाव, भीगे गाल, स्वप्न रूआँसे

विवेकी-अविवेकी कोषों में बसे

सूक्षमातिसूक्षम खयाल मेरे

रातों तिलमिलाते, क्यूँ ?

गुँथे खयालों से तुम्हारे

अभी बिंधे तुमसे, अभी उलझे मुझमें

 

सूर्य की किरणों का उल्लास बटोरती

अकेले-अकेले में अपने से सहजतम

तुम भी तो बातें करती नहीं थकती थीं

खयालों की धारा-गति अनचीन्ही

सोच-सोच कर मुझको पगली-सी हँसती ..

आँचल की लहरीली सलवटें शरमा देतीं

 

पर अब बीच हमारे वह बातें कहाँ

उच्छ्वास भी दुरूहतम

गहन सोच की सोच बढ़ गई है बस

विचारों के ब्रह्माण्ड में असीम बिखराव,

कष्टग्रस्त वेदना,  आत्यन्तिक तनाव

सब  कविता की पंक्तियों में गिरफ़्तार

 

बातें ? अब ... कौन-सी बातें ?

हमारी परस्पर दुखती मार्मिक चोट

से परिचित अपरिचय दिखाती

हर मिलने पर हृदय की धड़कन को थामे

तभी तो काँपते ओंठों से कह देती हो बस...

"कहिए"

 

                 --------

                                    विजय निकोर

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

                                     

 

 

 

 

 

 

Views: 704

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on February 6, 2014 at 8:52am

//'कहिए'  में गहन रहस्य समाहित है...समय के साथ उपजी दुरी, सुनकर हुई वेदना में पूर्व प्रगाढ़ सम्बन्ध की कसक आदि।
रचना भली लगी। बधाई आपको इस सफ़ल सम्प्रेषण के लिए।//

 

"कहिए" में बहुत रहस्य निहित है.... इस मर्म को समझने के लिए और उजागर करने कए लिए धन्यवाद। आपकी सराहना सदैव मन को छू जाती है, आदरणीया वंदना जी।

Comment by vijay nikore on February 1, 2014 at 12:33pm

//दिनोदिन असर खोते जा रहे सम्बन्धों का मार्मिक चित्रण हुआ है//

 

मेरी रचनाओं में सम्बन्धों के सूक्षम सूत्र देखने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सौरभ भाई जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 1, 2014 at 3:32am

दिनोदिन असर खोते जा रहे सम्बन्धों का मार्मिक चित्रण हुआ है, आदरणीय विजयजी.

सादर बधाइयाँ

Comment by Vindu Babu on January 31, 2014 at 10:39pm
अतीत और आज का समन्वय...अच्छा चित्रण किया है आदरणीय।
अपरिचय...लेकिन परिचित,बहुत सुंदर।
'कहिए'  में गहन रहस्य समाहित है...समय के साथ उपजी दुरी, सुनकर हुई वेदना में पूर्व प्रगाढ़ सम्बन्ध की कसक आदि।
रचना भली लगी।
बधाई आपको इस सफ़ल सम्प्रेषण के लिए।
सादर
Comment by vijay nikore on January 29, 2014 at 5:13pm

//कितने गहरे भाव ...जैसे दिल की धड़कने लिख दी अपने शब्दों में और क्या कहूँ प्रेम से भरपूर रचना//

आपने रचना के भावों को इस प्रकार अनुभव किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीया प्रियंका जी।

Comment by vijay nikore on January 29, 2014 at 4:28pm

//बहुत ही गहनतम भाव//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय नीरज जी।

 

 

 

Comment by vijay nikore on January 29, 2014 at 10:29am

रचना की गहराई तक पहुँचने के लिए आपने समय दिया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई गिरिराज जी।

Comment by vijay nikore on January 29, 2014 at 10:27am

 

रचना के भाव आपको अच्छे लगे, मेरा लिखना सार्थक हुआ।आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।

Comment by Priyanka singh on January 28, 2014 at 8:16pm

कितने गहरे भाव ...जैसे दिल की धड़कने लिख दी अपने शब्दों में और क्या कहूँ प्रेम से भरपूर रचना, एहसास महसूस होते है हर बार ......हार्दिक बधाई .....

Comment by Neeraj Neer on January 27, 2014 at 8:54pm

बहुत ही गहनतम भाव ... हार्दिक बधाई ..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service