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गहराइयाँ .... (विजय निकोर)

गहराइयाँ

 

 

घड़ी की दो सूइयाँ

काली गहराइयाँ

समय के कन्धों पर

उन्मुक्त

फिर भी बंधी-बंधी

पास आईं, मिलीं

मिलीं, फिर दूर हुईं

कोई आवाज़ .. टिक-टिक

बींधती चली गई

 

था भूकम्प, या मिथ्या स्वप्न

अब वह घड़ी पुरानी रूकी हुई

उखड़े अस्तित्व की छायाओं में

लटक रही है बेजान ।

समय की दीवार

रूकी धड़कन का एहसास ...

और वह सूइयाँ

कोई पुरानी भूली हुई कहानी-सी

पहचाने अपनेपन से दूर

बुझे हुए तारे के टूटे हुए हिस्सों-सी

जैसे तुम और मैं ...

 

यह दरमियानी फ़ासले

घड़ी की दो सूइयाँ

काली गहराइयाँ ...

 

           -------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by vijay nikore on March 1, 2014 at 7:49am

//सच में बहुत गहराई है सुन्दर अतीव सुन्दर प्रस्तुति//

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय राम जी। आशा है स्नेह बनाए रखेंगे।

Comment by vijay nikore on March 1, 2014 at 7:47am

//बहुत सुन्दरता से भावों को व्यक्त किया . बहुत बढियां कविता बनी है ..//

इन सुन्दर शब्दों से रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय नीरज जी।

Comment by vijay nikore on March 1, 2014 at 7:45am

//इस गहराई में बहुत गहराई है//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रमेश जी।

Comment by vijay nikore on February 25, 2014 at 8:23am

आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय आशीष जी।

Comment by vijay nikore on February 25, 2014 at 8:19am

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया राजेश जी। आप और सौरभ जी से मिले मार्ग-दर्शन के लिए आभारी हूँ।सादर।

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on February 24, 2014 at 10:45am

बहुत सुंदर 

Comment by vijay nikore on February 22, 2014 at 8:15am

//उन्मुक्त फिर भी बंधी-बंधी.....आदरणीय सिर्फ आपकी कलम से ही सम्भव है//

 

जय माँ शारदा ! सब वह लिखती हैं, उनकी देन है। सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कुंती जी।

 

Comment by vijay nikore on February 21, 2014 at 8:00am

 

//हर घटना/वस्तु को सूक्ष्मता से देखना और फिर उससे भी सूक्ष्मता से अपने जीवन के यथार्थ से जोड़ना...आपकी कुशल लेखनी का खेल है आदरणीय,जो आपके अंदर के गम्भीर कवि को प्रकाशित करता है।//

आपने मेरी कविताओं के माध्यम मुझको जानने की कोशिश की, और मुझको इतना मान दिया , इसके लिए मैं हृदय तल से आपका आभारी हूँ, आदरणीया वन्दना जी।

Comment by vijay nikore on February 20, 2014 at 7:44am

//जीवन के अतीत और आज को गहरे भाव मिले//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय जितेन्द्र जी।

 

 

Comment by vijay nikore on February 20, 2014 at 7:42am

//बहुत सुंदर भावभिव्यक्ति//

रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया अन्नपूर्णा जी।

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