For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हार गया समय ..(विजय निकोर)

हार गया समय ... !

 

 

कि जैसे अतिशय चिन्ता के कारण

आसमान काँपा

आज कुछ ज़्यादा अकेला

थपथपा रहा हूँ

कोई भीतरी सोच और

अनुभवों की द्दुतिमान मंणियाँ ...

तुम्हारी स्मृतिओं की सलवटों के बीच

मेरे स्नेह का रंग नहीं बदला

हार गया समय

समझौता करते ...

 

 

एकान्त-प्रिय निजी कोने में

दम घुटती हवा

अँधेरे का फैलाव, उस पर

कल्पना का नन्हा-सा आकाश

टंके हुए हैं वहाँ बेचैन खयालों में

धुँधले-से आकार के

पुराने परिचित रुआँसे साँवले सपने

चिर-प्रतीक्षित, कि आओगी तुम, आओगी,

हार गया समय

समझौता करते ...

 

 

अतीत के पिंजर से झाँकते

यौवन के यह साँवले सपने

आकाशी तारों-से यह आत्मा से चिपके

उन सपनों के यौवन का एहसास

महकता है लगातार, अभी भी ...

आश्चर्य ! आस्था की ढिबरी की

लो की रोशनी, मद्धम,

अग्नि-मणि-सी अभी तक टिमटिमा रही है

हार गया समय

समझौता करते ...

 

 

-------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 982

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on January 8, 2014 at 11:04am

//इसअति सुंदर  रचना  की भी हार्दिक बधाई॥//

 

आदरणीय अखिलेश जी, रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 7, 2014 at 7:45pm

वर्तमान की समस्त विसंगतियों के बीच से आशाओं की निर्मल धार बहती हुई आशान्वित करती है !

शुभ-शुभ आदरणीय !

सादर

Comment by vijay nikore on January 7, 2014 at 7:02pm

//बहुत गहरे प्रेम की अनुभूतियों को आपने लाजवाब शब्द संयोजन दिया है ॥ अति सुन्दर//

 

ऐसी सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, आदरणीय भाई गिरिराज जी।

 

सादर,

विजय निकोर 

Comment by vijay nikore on January 7, 2014 at 7:00pm

आदरणीय अजय शर्मा जी, रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on January 7, 2014 at 8:29am

//भावों का इतना सुंदर संचयन...समय तो हारेगा  ही//

आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कुंती जी। ऐसे ही स्नेह बनाए रखें।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on January 7, 2014 at 8:26am

 

//लाजवाब शब्दों का अनूठा संजोग पिरोया है आपने .......भावपूर्ण रचना //

 

ऐसे ही प्रोत्साहित करती रहें, आदरणीया प्रियंका जी। आपका आभारी हूँ।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on January 7, 2014 at 8:24am

//गहन भावाभिव्यक्ति//

रचना के भाव-अनुमोदन के लिए आपका आभारी हूँ, आदरणीया महिमा श्री जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on January 7, 2014 at 8:22am

//सुन्दर गहन प्रेम अनुभूति का प्रस्तुतिकरण हुआ है//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय स्तयनारायण सिंह जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 3, 2014 at 12:11pm

आदरणीय विजय निकोर सर वाह अत्यंत सारगर्भित रचना दिल को छू गईं पंक्तियाँ अंतिम बंद में योवन को यौवन कर लें. सादर बधाई इस सुन्दर रचना हेतु.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 2, 2014 at 9:48am

//एकान्त-प्रिय निजी कोने में

दम घुटती हवा

अँधेरे का फैलाव, उस पर

कल्पना का नन्हा-सा आकाश

टंके हुए हैं वहाँ बेचैन खयालों में

धुँधले-से आकार के

पुराने परिचित रुआँसे साँवले सपने//

आदरणीय विजय सर बहुत गहरी सोच है बहुधा यही कविता की आत्मा हुआ करती इस खूबसूरत रचना के लिये आपको बहुत बहुत बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तमन्नाओं को फिर रोका गया है
"धन्यवाद आ. रवि जी ..बस दो -ढाई साल का विलम्ब रहा आप की टिप्पणी तक आने में .क्षमा सहित..आभार "
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"आ. अजय जी इस बहर में लय में अटकाव (चाहे वो शब्दों के संयोजन के कारण हो) खल जाता है.जब टूट चुका…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. सौरभ सर .ग़ज़ल तक आने और उत्साहवर्धन करने का आभार ...//जैसे, समुन्दर को लेकर छोटी-मोटी जगह…"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।  अब हम पर तो पोस्ट…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service